संघ की शाखा में सिर्फ हिंदू? मोहन भागवत के बयान पर छिड़ी नई बहस।
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संवाद 24 (संजीव सोमवंशी)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत का हालिया बयान, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ की शाखा में केवल “हिंदू” ही शामिल हो सकते हैं, ने देश भर में व्यापक चर्चा और विवाद को जन्म दिया है। अपने बयान में मोहन भागवत जी ने यह स्पष्ट किया कि शाखा वह स्थान है जहां हिंदू समाज के भीतर चरित्र निर्माण और राष्ट्र निर्माण की गतिविधियाँ होती हैं। संघ की शाखा में किसी ब्राह्मण, किसी अन्य जाति, किसी शैव, किसी शाक्त, किसी मुस्लिम या किसी ईसाई को आने की अनुमति नहीं है, उसमें आने की सिर्फ हिंदुओं को अनुमति है। उन्होंने आगे कहा कि हर किसी की विशेषताओं का स्वागत है, लेकिन जब कोई व्यक्ति संघ की शाखा में आना चाहता है तो उसे अपने अलगाव (जाति, पंथ, संप्रदाय, भाषा, क्षेत्र, विचार आदि) के भाव अलग रख कर भारत माता के पुत्र के रूप में वहां आना पड़ेगा। यह बयान 8-9 नवंबर, 2025 को बेंगलुरु में आयोजित “संघ की 100 वर्ष यात्रा: नए क्षितिज” कार्यक्रम के दौरान दिया गया, इस बयान को समझने के लिए, यह आवश्यक है कि हम इसे संघ की व्यापक विचारधारा, इसके मिशन, और भारत के सांस्कृतिक सामाजिक परिदृश्य में इसके स्थान के संदर्भ में देखें।
आरएसएस, जो 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित किया गया था, को अक्सर हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्रवाद का प्रतीक माना जाता है। हालांकि, संघ का मिशन केवल धार्मिक पहचान तक सीमित नहीं है, यह सांस्कृतिक, सामाजिक, और राष्ट्रीय पुनरुत्थान का एक व्यापक प्रयास है। संघ का मानना है कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है, और इसीलिए उसकी गतिविधियाँ हिंदू समाज को संगठित करने और उसे मजबूत करने पर केंद्रित हैं। शाखा, जो संघ की मूल इकाई है, एक स्थान है जहां युवा हिंदू चरित्र निर्माण, अनुशासन, और राष्ट्र निर्माण के मूल्यों को सीखते हैं।
मोहन भागवत जी का बयान तब आता है जब संघ minority outreach programs के माध्यम से मुस्लिम और अन्य समुदायों के साथ संवाद बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। 2023 में, संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार, राम लाल, और कृष्ण गोपाल ने मुस्लिम नेतृत्व के साथ बैठकें की थीं, जिसमें जमा-अत-ए-इस्लामी हिंद, जमीअत उलमा-ए-हिंद, और अजमेर दरगाह के सलमान चिश्ती जैसे संगठनों के प्रतिनिधि शामिल थे।
इन बैठकों का उद्देश्य मुस्लिम समुदाय और संघ के बीच की गलतफहमियों को दूर करना और बेहतर समझ विकसित करना था। हालांकि, भागवत जी के हालिया बयान से यह स्पष्ट होता है कि संघ outreach programs के माध्यम से संवाद बढ़ा सकता है, लेकिन उसकी कोर गतिविधियाँ अर्थात् शाखा, केवल उन लोगों के लिए है जिनके मन में भारत की संस्कृति के प्रति आस्था और सम्मान है। यह बयान दिखाता है कि जहां outreach programs विभिन्न समुदायों के साथ सहयोग बढ़ाने का प्रयास करते हैं, जबकि शाखाएँ उन सभी को हिंदू मानते हुए उनके चरित्र निर्माण पर केंद्रित रहती हैं जो भारत को अपनी माता मानते हुए इसकी मिट्टी से जुड़े हुए है।
मोहन भागवत जी के इस बयान का केंद्रीय पहलू “हिंदू” की परिभाषा है। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति “हिंदू” बनकर आएगा, उसका स्वागत है। यहाँ “हिंदू” शब्द की व्याख्या महत्वपूर्ण हो जाती है। आरएसएस के संदर्भ में, “हिंदू” केवल एक धार्मिक पहचान नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान का प्रतीक है।
संघ का मानना है कि भारत की सांस्कृतिक विरासत हिंदू मूल्यों और परंपराओं पर आधारित है, और इसीलिए शाखा में आने वाले व्यक्ति को अपनी “separateness” को छोड़ना होगा और “भारत माता के पुत्र” के रूप में आना होगा। यह दृष्टिकोण सांस्कृतिक एकता और राष्ट्रीय पहचान को मजबूत करने का प्रयास है। संघ का तर्क है कि शाखा एक स्थान है जहां हिंदू युवा एक आम सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान विकसित करते हैं, जो राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका को मजबूत करता है। यह प्रक्रिया अन्य धार्मिक या जातीय पहचानों के साथ मेल नहीं खाती है, क्योंकि शाखा का उद्देश्य हिंदू समाज के हु और अनुशासन को बढ़ावा देना है।
मोहन भागवत के बयान को समझने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि हम संघ की विभिन्न गतिविधियों और संगठनों को अलग-अलग संदर्भ में देखें। जबकि शाखा हिंदू समाज के भीतर चरित्र निर्माण पर केंद्रित है, संघ के अन्य संगठन, जैसे कि विद्या भारती, सेवा भारती, और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, विभिन्न समुदायों के साथ सहयोग और विकास कार्यों में शामिल हैं।
उदाहरण के लिए, विद्या भारती शिक्षा के क्षेत्र में काम करती है और विभिन्न समुदायों, जिसमें मुस्लिम और इसे समुदाय भी शामिल हैं, के बच्चों को शिक्षा प्रदान करती है। सेवा भारती सामाजिक सेवा और कल्याण कार्यों में शामिल है, जहां यह विभिन्न समुदायों को सहायता प्रदान करती है। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच मुस्लिम समुदाय के साथ संवाद बढ़ाने और उनके विकास में योगदान देने का प्रयास करता है। भागवत ने अपने बयान में यह भी स्पष्ट किया कि संघ किसी को विशेष लाभ या सहायता नहीं देता। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपना “उद्धार” (upliftment) स्वयं करना होगा, और संघ केवल उन्हें ऐसा करने में सक्षम बनाता है। यह दृष्टिकोण self-reliance और व्यक्तिगत जिम्मेदारी पर जोर देता है, जो संघ की विचारधारा का एक केंद्रीय तत्व है।
संघ की गतिविधियाँ और उसकी विचारधारा ने भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला है। शाखाएँ हिंदू युवाओं को अनुशासन, नेतृत्व, और राष्ट्र निर्माण के मूल्यों को सिखाती हैं, जो उन्हें एक बेहतर नागरिक बनने में मदद करती हैं। संघ के अन्य संगठन, जैसे कि सेवा भारती, ने आपदा राहत, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जो विभिन्न समुदायों को लाभ पहुंचाता है।मुस्लिम राष्ट्रीय मंच और अन्य outreach programs के माध्यम से, संघ ने मुस्लिम समुदाय के साथ संवाद बढ़ाने और उनके विकास में योगदान देने का प्रयास किया है।
जबकि इन कार्यक्रमों की आलोचना भी की गई है, लेकिन वे संघ की व्यापक दृष्टि का हिस्सा हैं, जो सभी समुदायों के बीच समझ और सहयोग को बढ़ावा देना चाहता है। भागवत जी के बयान ने यह भी उजागर किया कि संघ की शाखाएँ एक विशिष्ट उद्देश्य और संदर्भ में काम करती हैं, और उन्हें अन्य गतिविधियों और संगठनों से अलग देखा जाना चाहिए। यह दृष्टिकोण संघ की कार्यप्रणाली की स्पष्टता और पारदर्शिता को दर्शाता है, जो इसके मिशन और उद्देश्यों को समझने में मदद करता है।
अतः सभी को मोहन भागवत के बयान कि संघ की शाखा में केवल “हिंदू” ही शामिल हो सकते हैं, को व्यापक संदर्भ में देखने की आवश्यकता है। यह बयान संघ की विचारधारा, इसके मिशन, और भारत के सांस्कृतिक-सामाजिक परिदृश्य में इसके स्थान को दर्शाता है। संघ के अन्य संगठन विभिन्न समुदायों के साथ सहयोग और विकास कार्यों में शामिल हैं।
संघ की गतिविधियाँ और उसकी विचारधारा ने भारतीय समाज पर सकारात्मक प्रभाव डाला है, जहां यह युवाओं को अनुशासन और नेतृत्व सिखाती है, और विभिन्न समुदायों को शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक सेवा प्रदान करती है। मोहन भागवत का बयान संघ की कार्यप्रणाली की स्पष्टता और पारदर्शिता को दर्शाता है, जो इसके मिशन और उद्देश्यों को समझने में मदद करता है। अंततः संघ की भूमिका और उसकी विचारधारा को समझने के लिए, यह आवश्यक है कि हम इसे एक व्यापक संदर्भ में देखें, जहां यह सांस्कृतिक एकता, राष्ट्रीय पुनरुत्थान, और सभी समुदायों के बीच समझ और सहयोग को बढ़ावा देने का प्रयास करता है। यह दृष्टिकोण संघ को एक ऐसे संगठन के रूप में प्रस्तुत करता है जो भारत के सांस्कृतिक और राष्ट्रीय मूल्यों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।






