जानिए कैसे एकादशी पूजन से खुलते हैं भक्ति, स्वास्थ्य और मोक्ष के द्वार
Share your love

संवाद 24 (डेस्क)। भारतीय सनातन संस्कृति में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। यह न केवल धार्मिक श्रद्धा से जुड़ा है, बल्कि मानव शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि से भी संबंधित है। प्रत्येक मास में दो एकादशियाँ आती हैं एक शुक्ल पक्ष की और दूसरी कृष्ण पक्ष की इस प्रकार वर्ष भर में 24 एकादशियाँ होती हैं (अधिक मास में यह संख्या 26 हो जाती है)। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और कहा गया है कि “एकादशी व्रतेनैव नारायणं प्रसीदति।” अर्थात् एकादशी का व्रत करने से स्वयं भगवान नारायण प्रसन्न होते हैं।
आज के डिजिटल और व्यस्त जीवन में भी एकादशी व्रत की परंपरा भारतीय परिवारों और युवाओं में पुनः लोकप्रिय हो रही है।
🌺 एकादशी व्रत का धार्मिक महत्व
पौराणिक ग्रंथों में वर्णन है कि एकादशी तिथि का संबंध भगवान विष्णु के योगनिद्रा से है। यह तिथि इंद्रिय-निग्रह (sense control) और आत्म-संयम का प्रतीक मानी जाती है। पद्म पुराण और स्कंद पुराण में कहा गया है कि एकादशी के दिन उपवास, जप और ध्यान करने से मनुष्य के पाप नष्ट होते हैं और वह मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।
धर्मशास्त्रों के अनुसार, जो व्यक्ति नियमपूर्वक एकादशी का पालन करता है, वह सौ अश्वमेध यज्ञों के समान पुण्य प्राप्त करता है। यह व्रत शरीर को हल्का, मन को स्थिर और आत्मा को पवित्र बनाता है।
🔱 एकादशी व्रत रखने की वैज्ञानिक दृष्टि
व्रत को केवल धार्मिक न मानकर स्वास्थ्य और मानसिक अनुशासन से भी जोड़ा गया है। वैज्ञानिक दृष्टि से, महीने में दो बार उपवास करने से शरीर की पाचन प्रणाली को विश्राम मिलता है। एकादशी का दिन चंद्रमा के प्रभाव में मन की अस्थिरता का होता है, अतः उपवास और ध्यान से मन पर नियंत्रण संभव होता है। जल, फल और हल्के आहार का सेवन शरीर में विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है। धार्मिक कर्म और भक्ति से मस्तिष्क में सेरोटोनिन और डोपामिन का स्तर संतुलित होता है, जिससे व्यक्ति को शांति का अनुभव होता है।
🌼 एकादशी व्रत की पारंपरिक विधि (पूजन-विधि सहित)
🕔 1. व्रत की पूर्व तैयारी
एकादशी व्रत से एक दिन पूर्व अर्थात् दशमी तिथि से ही संयम शुरू कर दें। इस दिन रात्रि में प्याज, लहसुन, मांस, शराब आदि तामसिक वस्तुओं का सेवन न करें। मानसिक रूप से भगवान विष्णु के प्रति समर्पण का भाव रखें।
🪔 2. प्रातःकालीन पूजा विधि
प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर के पूजा स्थान को शुद्ध जल और गंगाजल से पवित्र करें।इसके बाद, भगवान विष्णु का ध्यान करके व्रत का संकल्प लें।
🌿 3. पूजन की प्रक्रिया
एक चौकी पर पीला या लाल वस्त्र बिछाकर शालिग्राम या विष्णुजी की प्रतिमा और माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। शुद्ध घी या तेल का दीपक जलाएं और धूप-दीप, कपूर जलाएं, दीपक जलाएँ और तिलक लगाएँ। भगवान विष्णु का गंगाजल से अभिषेक करें। भगवान विष्णु को पंचामृत, फल, मिठाई और पंजीरी जैसे सात्विक भोग अर्पित करें। भोग में तुलसी दल अवश्य शामिल करें। इसके बाद भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें और एकादशी व्रत की कथा का पाठ करें। आप विष्णु सहस्रनाम या भगवद गीता का पाठ भी कर सकते हैं। अंत में भगवान विष्णु की आरती करें और प्रसाद सभी में बांटें। गरीबों और जरूरतमंदों को जल, भोजन और वस्त्र का दान कर सकते हैं।
🍃 4. उपवास नियम
उपवास तीन प्रकार का होता है:
निर्जला व्रत: केवल जल भी नहीं लेना, यह कठिन है, पर अत्यंत फलदायक।
फलाहार व्रत: फल, दूध और जल का सेवन।
एकाहार व्रत: केवल एक बार भोजन (सात्त्विक आहार)।
व्रती को दिनभर भगवान का नामजप करना चाहिए “हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।”
🌙 5. एकादशी रात्रि साधना
रात्रि में जागरण करने का विधान है। भगवान विष्णु का भजन, कीर्तन या शास्त्र पाठ करें। यह जागरण आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाता है और व्रत की पूर्णता का संकेत है।
🌄 6. द्वादशी (अगले दिन) पारण विधि
अगले दिन प्रातः स्नान कर भगवान विष्णु की पुनः आरती करें। ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन कराएँ और दक्षिणा दें। इसके बाद स्वयं फलाहार या सात्त्विक भोजन कर व्रत का पारण करें।
🌸 एकादशी से जुड़े कुछ प्रमुख नियम
व्रत के दौरान असत्य, क्रोध, निंदा, आलस्य और विवाद से बचें।
व्रती को दिनभर मन, वचन और कर्म से शुद्ध रहना चाहिए। एकादशी के दिन चावल और अन्य अनाज का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन ज्यादा बोलना और बाल कटवाना भी वर्जित है। घर में झाड़ू नहीं लगाना चाहिए ताकि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु न हो। भगवान विष्णु के नाम का स्मरण और तुलसी पूजन अनिवार्य है। यह व्रत पति-पत्नी दोनों एक साथ भी कर सकते हैं, गृहस्थ जीवन में शांति और समृद्धि बढ़ती है। मासानुसार प्रत्येक एकादशी की कथा का श्रवण या पाठ अवश्य करें।
📅 एकादशी व्रत कैलेंडर 2025
1. पुत्रदा एकादशी – 10 जनवरी 2025 – शुक्रवार – पौष शुक्ल एकादशी – संतान-प्राप्ति व गृह-सुख के लिए श्रेष्ठ
2. षट्तिला एकादशी – 25 जनवरी 2025 – शनिवार – माघ कृष्ण एकादशी – तिल दान, तप और दान से पाप मोचन
3. जया एकादशी – 9 फरवरी 2025 – रविवार – माघ शुक्ल एकादशी – पुण्य, यश और मुक्ति प्रदायक
4. विजया एकादशी – 25 फरवरी 2025 – मंगलवार – फाल्गुन कृष्ण एकादशी – विजय प्राप्ति और संकट-निवारण
5. आमलकी एकादशी – 11 मार्च 2025 – मंगलवार – फाल्गुन शुक्ल एकादशी – आंवला-पूजन, सर्व पाप क्षालन
6. पापमोचनी एकादशी – 25 मार्च 2025 – मंगलवार – चैत्र कृष्ण एकादशी – पापों से मुक्ति, आत्मशुद्धि
7. कामदा एकादशी – 10 अप्रैल 2025 – गुरुवार – चैत्र शुक्ल एकादशी – दांपत्य सुख व संतान-कल्याण
8. वरूथिनी एकादशी – 24 अप्रैल 2025 – गुरुवार – वैशाख कृष्ण एकादशी – पुण्य वृद्धि और वैराग्य साधना
9. मोहिनी एकादशी – 10 मई 2025 – शनिवार – वैशाख शुक्ल एकादशी – मोहमुक्ति व भक्ति-प्रेरक
10. अपरा एकादशी – 24 मई 2025 – शनिवार – ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी – पाप निवारण और श्रद्धा-वर्धन
11. निर्जला एकादशी – 9 जून 2025 – सोमवार – ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी – सबसे महान एकादशी, सभी एकादशियों का फल
12. योगिनी एकादशी – 23 जून 2025 – सोमवार – आषाढ़ कृष्ण एकादशी – स्वास्थ्य व कर्म-शुद्धि प्रदायक
13. देवशयनी (हरि शयन) एकादशी – 8 जुलाई 2025 – मंगलवार – आषाढ़ शुक्ल एकादशी – विष्णु योगनिद्रा प्रारंभ, चातुर्मास आरंभ
14. कामिका एकादशी – 22 जुलाई 2025 – मंगलवार – श्रावण कृष्ण एकादशी – पितृ तर्पण व शिव-पूजन का विशेष फल
15. पवित्रा एकादशी – 6 अगस्त 2025 – बुधवार – श्रावण शुक्ल एकादशी – रक्षा-सूत्र पूजन, व्रत-महादिवस
16. अजा एकादशी – 20 अगस्त 2025 – बुधवार – भाद्रपद कृष्ण एकादशी – जन्म पापों से मुक्ति व मोक्ष
17. पद्मा (परिवर्तिनी) एकादशी – 5 सितंबर 2025 – शुक्रवार – भाद्रपद शुक्ल एकादशी – विष्णु स्थिति-परिवर्तन, धर्म-साधना
18. इंदिरा एकादशी – 19 सितंबर 2025 – शुक्रवार – आश्विन कृष्ण एकादशी – पितृ मोक्ष व श्राद्ध फल
19. पाशांकुशा एकादशी – 4 अक्टूबर 2025 – शनिवार – आश्विन शुक्ल एकादशी – धर्म-आयु-कीर्ति वृद्धि
20. रमा एकादशी – 18 अक्टूबर 2025 – शनिवार – कार्तिक कृष्ण एकादशी – लक्ष्मी प्रसन्नता व धन-संपदा
21. देवउठनी (प्रबोधिनी) एकादशी – 2 नवंबर 2025 – रविवार – कार्तिक शुक्ल एकादशी – विष्णु जागरण, शुभ विवाह-आरंभ
22. उत्पन्ना एकादशी – 16 नवंबर 2025 – रविवार – मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी – एकादशी व्रत आरंभ का दिवस
23. मोक्षदा एकादशी – 1 दिसंबर 2025 – सोमवार – मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी – भगवद्गीता जन्म तिथि, मोक्ष-प्रदायक
24. सफला एकादशी – 15 दिसंबर 2025 – सोमवार – पौष कृष्ण एकादशी – इच्छापूर्ति व सफलता प्रदायक
प्रत्येक एकादशी के दिन विष्णुजी के नाम का स्मरण, तुलसी दल अर्पण और सात्त्विक आहार का पालन अनिवार्य बताया गया है। चातुर्मास (आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक) के चार माह भक्ति-साधना, दान-पुण्य और उपवास के लिए सबसे श्रेष्ठ माने जाते हैं। यदि एकादशी और द्वादशी की तिथि मिल जाए तो स्मार्तों के लिए वैकल्पिक व्रत का विधान रहता है।
🌻 एकादशी व्रत के सामाजिक और सांस्कृतिक लाभ
एकादशी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, यह सामाजिक अनुशासन और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है। इस दिन मंदिरों में सामूहिक भजन, कथा, और सेवा गतिविधियाँ होती हैं।
व्रती व्यक्ति समाज में संयम, करुणा और परोपकार की भावना का संचार करता है। यह दिन उपभोक्तावाद से विराम लेकर आत्म-मूल्यांकन और साधना का अवसर देता है। आज के युग में जब तनाव, प्रतिस्पर्धा और भागदौड़ सामान्य हो गई है, एकादशी का व्रत मन को विराम और आत्मबल देता है।
एकादशी पूजन विधि भारतीय जीवनदर्शन का जीवंत उदाहरण है। जहाँ आहार, व्यवहार, और अध्यात्म का संतुलन मिलता है। यह व्रत न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि एक वैज्ञानिक अनुशासन भी है जो मन, शरीर और आत्मा को एक सूत्र में बाँधता है। जब व्यक्ति भगवान विष्णु की शरण में भक्ति, संयम और सेवा की भावना से यह व्रत करता है, तो जीवन में शांति, स्वास्थ्य और सौभाग्य स्वतः प्राप्त होते हैं।
“एकादशी तिथि विष्णोः प्रिय तिथिः परिकीर्तिता।
तस्यां यः कुरुते व्रतम्, स याति परमं पदम्॥”
एकादशी व्रत केवल उपवास नहीं यह आत्मशुद्धि, अनुशासन और “आध्यात्मिक आत्मबल” का उत्सव है। इसे निभाना केवल परंपरा नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है जो “स्वस्थ तन, शुद्ध मन और परम कल्याण” की ओर ले जाती है।



