स्मार्ट फोन से स्मार्ट चोर तक: डिजिटल युग में आपकी प्राइवेसी कितनी सुरक्षित?
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संवाद 24 (संजीव सोमवंशी)। आज के डिजिटल युग में इंटरनेट और तकनीकी प्रगति ने जीवन को सुविधाजनक बना दिया है, लेकिन इसके साथ ही साइबर हमले और डेटा चोरी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। सिस्को की 2022 रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति सेकंड औसतन 18 साइबर हमले हो रहे हैं, जो हर साल बढ़ते जा रहे हैं। आईबीएम की 2023 रिपोर्ट बताती है कि एक डेटा ब्रीच की औसत लागत 4.24 मिलियन डॉलर तक पहुंच गई है, जो पिछले वर्षों से अधिक है। विशेषज्ञों का कहना है कि बढ़ते डिजिटलीकरण के बीच साइबर सुरक्षा और डेटा प्राइवेसी अब राष्ट्रीय सुरक्षा का हिस्सा बन चुके हैं।
डेटा ब्रीच वह स्थिति है जब कोई अनधिकृत व्यक्ति या संस्था संवेदनशील, गोपनीय या संरक्षित डेटा तक पहुंच बनाती है, उसे चुराती है या सार्वजनिक करती है। इसमें व्यक्तिगत पहचान जानकारी (पीआईआई), वित्तीय डेटा, स्वास्थ्य रिकॉर्ड, व्यापारिक रहस्य और अन्य संवेदनशील सूचनाएं शामिल होती हैं। ऐसे हमले विभिन्न तरीकों से होते हैं – हैकिंग, फिशिंग, मैलवेयर संक्रमण, मानव त्रुटि या भौतिक चोरी। एक हालिया सर्वे में पता चला कि 53 प्रतिशत लोग अपने व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। यह चिंता स्वाभाविक है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में कई बड़ी घटनाएं सामने आई हैं।
2017 में वॉन्नाक्राई रैनसमवेयर हमले ने वैश्विक स्तर पर हलचल मचा दी। इसने 150 से अधिक देशों में हजारों कंप्यूटरों को संक्रमित किया, महत्वपूर्ण डेटा को एन्क्रिप्ट कर फिरौती की मांग की। इससे अस्पताल, बैंक और सरकारी संस्थान प्रभावित हुए। इससे पहले 2013 में अमेरिकी खुफिया एजेंसी एनएसए के ठेकेदार एडवर्ड स्नोडेन ने सरकारी निगरानी कार्यक्रमों का खुलासा किया, जिसने डेटा प्राइवेसी पर वैश्विक बहस छेड़ दी। 2018 में केम्ब्रिज एनालिटिका कांड ने फेसबुक उपयोगकर्ताओं के डेटा को बिना सहमति राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने का मामला उजागर किया। गार्टनर की 2023 रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में प्रतिदिन 2.5 क्विंटिलियन बाइट्स डेटा उत्पन्न हो रहा है, जबकि पीयू रिसर्च सेंटर के 2022 अध्ययन में 79 प्रतिशत अमेरिकी इंटरनेट उपयोगकर्ता डेटा गोपनीयता को लेकर चिंतित पाए गए।
ये घटनाएं दर्शाती हैं कि डेटा अब सबसे मूल्यवान संपत्ति बन चुका है, लेकिन इसका दुरुपयोग भी आसान हो गया है। साइबर अपराधी लगातार नए तरीके ईजाद कर रहे हैं, जिससे व्यक्तियों, संगठनों और राष्ट्रों को खतरा बढ़ रहा है।
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, डेटा एन्क्रिप्शन एक प्रभावी उपाय है। यह डेटा को कोड में बदल देता है, जिसे केवल अधिकृत व्यक्ति ही डिकोड कर सकता है। फायरवॉल नेटवर्क ट्रैफिक को फिल्टर कर अनधिकृत पहुंच रोकते हैं। मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन (एमएफए) खातों की सुरक्षा बढ़ाता है, जहां पासवर्ड के अलावा एसएमएस कोड, बायोमेट्रिक या ऐप आधारित सत्यापन जरूरी होता है।
संगठनों के लिए सुरक्षा नीतियां नियमित अपडेट करना अनिवार्य है। कर्मचारियों को साइबर जागरूकता प्रशिक्षण देना चाहिए। सुरक्षा ऑडिट और पेनट्रेशन टेस्टिंग से कमजोरियां पता चलती हैं। डेटा बैकअप रैनसमवेयर जैसे हमलों में डेटा पुनर्प्राप्ति सुनिश्चित करता है।
व्यक्तिगत स्तर पर मजबूत, अद्वितीय पासवर्ड का उपयोग और नियमित बदलाव जरूरी है। सॉफ्टवेयर अपडेट से सुरक्षा पैच लागू होते हैं। फिशिंग से बचने के लिए संदिग्ध ईमेल, लिंक या अटैचमेंट पर क्लिक न करें।
कानूनी रूप से यूरोपीय संघ का जीडीपीआर (जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन) और भारत का प्रस्तावित पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल मिसाल हैं। इनमें डेटा संग्रह, उपयोग और सहमति पर सख्त नियम हैं। उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों – डेटा देखने, सुधारने, मिटाने का अधिकार – के बारे में जागरूक करना चाहिए। संगठनों को संवेदनशील डेटा का उचित प्रबंधन और स्पष्ट सहमति अनिवार्य करनी चाहिए।
भारत में साइबर सुरक्षा पर विशेष फोकस है। सरकार ने 2020 में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति लागू की और पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल पर काम जारी है। भारतीय कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम (सीईआरटी-इन) लगातार अलर्ट जारी करती है। फिर भी चुनौतियां कम नहीं हैं। साइबर अपराधों की संख्या तेजी से बढ़ रही है 2023 में लाखों मामले दर्ज हुए। साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों की कमी एक बड़ी समस्या है। कई संगठन और व्यक्ति जागरूकता की कमी से शिकार बनते हैं।
समाधान के रूप में शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रम जरूरी हैं। स्कूलों, कॉलेजों और कार्यालयों में साइबर सुरक्षा पाठ्यक्रम शामिल किए जाने चाहिए। संगठनों को सख्त नीतियां अपनानी चाहिए और नियमित ऑडिट कराना चाहिए। सरकार को मजबूत कानून लागू करने के साथ अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना चाहिए।
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. राकेश कुमार कहते हैं, “भारत डिजिटल इंडिया की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन बिना मजबूत सुरक्षा के यह जोखिम भरा है। हर नागरिक को डेटा प्राइवेसी का हिस्सा बनना चाहिए।” आईटी फर्मों के सीईओ मानते हैं कि एमएफए और एन्क्रिप्शन अब बेसिक नहीं, अनिवार्य हैं।
साइबर सुरक्षा और डेटा प्राइवेसी डिजिटल युग की अनिवार्यता हैं। बढ़ते खतरों के बीच सतर्कता, तकनीकी उपाय और कानूनी ढांचा ही बचाव हैं। व्यक्तियों, संगठनों और सरकार को मिलकर काम करना होगा। एक सुरक्षित डिजिटल भारत ही समृद्ध भारत की नींव बनेगा। जागरूकता और कार्रवाई से हम डेटा चोरी के युग को पीछे छोड़ सकते हैं।



