‘धोखा’ बोलना पड़ा भारी, पतंजलि के च्यवनप्राश विज्ञापन पर कोर्ट की रोक।
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संवाद 24 (डेस्क)। दिल्ली हाईकोर्ट ने बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद को बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने कंपनी को अपने विवादित ‘स्पेशल च्यवनप्राश’ विज्ञापन को 72 घंटे के भीतर सभी प्लेटफॉर्म्स से हटाने का आदेश दिया है।
यह वही विज्ञापन है जिसमें पतंजलि ने अन्य ब्रांड्स के च्यवनप्राश को ‘धोखा’ करार दिया था। अदालत ने कहा है कि कोई भी कंपनी अपने उत्पाद की तुलना कर सकती है, लेकिन प्रतिस्पर्धी ब्रांड्स को ‘नीचा दिखाने’ या ‘भ्रामक बयान’ देने का अधिकार नहीं है।
यह आदेश जस्टिस तेजस करिया की बेंच ने 6 नवंबर 2025 को पारित किया था, जिसे बुधवार को औपचारिक रूप से पढ़ा गया। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह अंतरिम प्रतिबंध फरवरी 2026 तक लागू रहेगा, यानी तब तक पतंजलि इस विज्ञापन को किसी भी मीडिया प्लेटफॉर्म पर नहीं दिखा पाएगी।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अगर एक सामान्य उपभोक्ता इस विज्ञापन को देखे तो उसे यह महसूस होता है कि अन्य ब्रांड्स के च्यवनप्राश उत्पाद “धोखा” हैं। यह संदेश प्रतिस्पर्धा कानून और उपभोक्ता संरक्षण कानूनों की भावना के विपरीत है।
कोर्ट ने अपने फैसले में निम्नलिखित निर्देश दिए –
1. पतंजलि को अपने विज्ञापन को 72 घंटे के भीतर सभी माध्यमों से हटाना या ब्लॉक करना होगा।
2. प्रतिबंध में टीवी चैनल्स, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स, डिजिटल मीडिया, प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया अकाउंट्स (जैसे यूट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि) शामिल हैं।
3. पतंजलि भविष्य में कोई ऐसा नया विज्ञापन नहीं चला सकेगा जो अन्य ब्रांड्स को ‘धोखा’ कहे या उनके उत्पाद की औषधीय गुणवत्ता पर सवाल उठाए।
4. अदालत ने कहा, “विज्ञापन में उत्पाद की तुलना की जा सकती है, परंतु ऐसी तुलना तथ्यात्मक और निष्पक्ष होनी चाहिए, न कि किसी अन्य कंपनी की छवि को नुकसान पहुंचाने वाली।”
च्यवनप्राश बाजार में प्रतिस्पर्धा की जंग –
यह विवाद दरअसल च्यवनप्राश सेगमेंट में दो बड़े खिलाड़ियों डाबर इंडिया लिमिटेड और पतंजलि आयुर्वेद के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा से जुड़ा है। डाबर लगभग 60% मार्केट शेयर के साथ च्यवनप्राश बाजार का निर्विवाद नेता माना जाता है, जबकि पतंजलि ने हाल ही में अपने नए ‘स्पेशल च्यवनप्राश’ के जरिए इस क्षेत्र में आक्रामक एंट्री ली है।
डाबर का आरोप है कि पतंजलि ने अपने विज्ञापन में न सिर्फ उनके उत्पाद को “कमतर” बताया, बल्कि पूरे च्यवनप्राश उद्योग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया। कंपनी का कहना है कि पतंजलि का विज्ञापन उपभोक्ताओं में यह धारणा पैदा करता है कि बाकी सभी ब्रांड्स “फर्जी” या “धोखा” हैं, यह न केवल अनुचित प्रतिस्पर्धा है, बल्कि उपभोक्ता को गुमराह करने वाला कदम भी है।
डाबर ने कोर्ट में यह मामला “कॉमर्शियल डिस्पैरेजमेंट” यानी व्यावसायिक अपमान के रूप में दर्ज कराया, जिसमें कोई कंपनी जानबूझकर दूसरी कंपनी की साख खराब करने की कोशिश करती है।
विज्ञापन में क्या था विवादास्पद?
पतंजलि के इस विज्ञापन में ‘चलो, धोखा खाओ!’ जैसी लाइन का इस्तेमाल किया गया था, जिसने सोशल मीडिया से लेकर उद्योग जगत तक हलचल मचा दी थी। विज्ञापन में बाबा रामदेव स्वयं यह कहते दिखाई दिए कि “अधिकांश लोग च्यवनप्राश के नाम पर धोखा खा रहे हैं।” कोर्ट ने माना कि यह लाइन सीधे तौर पर अन्य ब्रांड्स के प्रति नकारात्मक संदेश देती है और उपभोक्ता को यह सोचने पर मजबूर करती है कि बाकी ब्रांड्स नकली या कम गुणवत्ता वाले हैं।
हाई कोर्ट ने कहा कि विज्ञापन में प्रयुक्त भाषा, प्रस्तुति और टोन “मुकाबले से आगे बढ़कर प्रतिद्वंद्वी की छवि धूमिल करने” की कोशिश लगती है। कोर्ट के अनुसार, यह “फ्री मार्केट” के उस सिद्धांत के खिलाफ है, जिसमें उपभोक्ता को सही सूचना और निष्पक्ष विकल्प मिलने चाहिए।
क्या कहता है कानून?
भारतीय विज्ञापन परिषद (ASCI) के दिशानिर्देशों और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत किसी भी विज्ञापन में:
भ्रामक दावा नहीं होना चाहिए, प्रतिस्पर्धी ब्रांड्स के प्रति अपमानजनक भाषा का प्रयोग वर्जित है, उत्पाद की तुलना वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए। अदालत ने अपने आदेश में इन्हीं सिद्धांतों को आधार बनाते हुए पतंजलि को तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।
फरवरी 2026 तक प्रभावी रहेगा आदेश
दिल्ली हाईकोर्ट ने यह आदेश अंतरिम यानी अस्थायी राहत के रूप में दिया है। मुख्य सुनवाई की तारीख 26 फरवरी 2026 तय की गई है, जब दोनों पक्षों की ओर से मेरिट्स पर बहस होगी। उस सुनवाई में अदालत यह तय करेगी कि पतंजलि को स्थायी रूप से यह विज्ञापन बंद रखने का निर्देश दिया जाए या नहीं। कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यह मामला विज्ञापन उद्योग के लिए एक मिसाल बन सकता है। आमतौर पर ब्रांड्स तुलना करने वाले विज्ञापन बनाते हैं, लेकिन इस केस के बाद कंपनियां “सीधी आलोचना या भ्रामक भाषा” से बचने के लिए अधिक सतर्क होंगी।
डाबर को मिली राहत, पतंजलि के लिए झटका
डाबर इंडिया लिमिटेड ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा की दिशा में एक सही कदम है। कंपनी के प्रवक्ता ने कहा,
“हम उत्पाद की गुणवत्ता में विश्वास रखते हैं और किसी भी प्रतिस्पर्धी को हमारे ब्रांड की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने का अधिकार नहीं है।”
दूसरी ओर, पतंजलि की ओर से अभी आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन सूत्रों के अनुसार कंपनी इस आदेश के खिलाफ अपील करने की तैयारी कर रही है। कंपनी का मानना है कि उनका विज्ञापन आयुर्वेदिक जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से था, न कि किसी ब्रांड को नीचा दिखाने के लिए।
पहले भी रह चुका है विवाद
यह पहला मौका नहीं है जब पतंजलि और डाबर के बीच टकराव हुआ हो। जुलाई 2025 में भी डाबर की अपील पर कोर्ट ने पतंजलि को अपने पुराने च्यवनप्राश विज्ञापन को हटाने का आदेश दिया था। उस विज्ञापन में पतंजलि ने डाबर के च्यवनप्राश को “साधारण” और “आयुर्वेद से दूर” बताया था। विज्ञापन में बाबा रामदेव यह कहते नजर आए थे कि “जिन्हें वेदों और आयुर्वेद का ज्ञान नहीं, वे पारंपरिक च्यवनप्राश कैसे बना सकते हैं?”
डाबर ने तब भी इसे ब्रांड डिस्पैरेजमेंट बताया था और अदालत से राहत मांगी थी। अब दोबारा वही मुद्दा उठने पर कोर्ट ने स्पष्ट संदेश दिया है कि विज्ञापन की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि दूसरों को अपमानित किया जाए।
मार्केट पर क्या असर पड़ेगा?
विशेषज्ञों का मानना है कि इस आदेश का असर केवल पतंजलि और डाबर तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे FMCG सेक्टर में इसका प्रभाव दिखाई देगा। आने वाले समय में कंपनियां एथिकल मार्केटिंग (Ethical Marketing) पर अधिक जोर देंगी और उपभोक्ता भी विज्ञापनों की विश्वसनीयता को लेकर अधिक सतर्क रहेंगे।
इसके अलावा, च्यवनप्राश सेगमेंट में यह विवाद उपभोक्ताओं की धारणा पर असर डाल सकता है। जहां एक ओर डाबर के लिए यह ब्रांड ट्रस्ट को मजबूत करने का मौका है, वहीं पतंजलि के लिए यह चुनौती होगी कि वह अपनी साख और ब्रांड छवि को फिर से स्थापित करे।
कानूनी जानकारों की राय
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यह मामला “कॉमर्शियल स्पीच बनाम अनफेयर प्रैक्टिस” की श्रेणी में आता है। अदालत को यह संतुलन बनाना होता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी बनी रहे और उपभोक्ता को गलत सूचना से भी बचाया जा सके। वरिष्ठ अधिवक्ता रवि नायर का कहना है, कि “यह फैसला कंपनियों को यह संदेश देता है कि विज्ञापन की आज़ादी सीमाओं में रहकर ही दी जानी चाहिए। उपभोक्ता की भावनाओं और प्रतिस्पर्धी की साख दोनों का सम्मान जरूरी है।”
आगे का रास्ता
26 फरवरी 2026 को जब मामला दोबारा कोर्ट में आएगा, तब दोनों पक्षों को अपने-अपने दावे साबित करने का अवसर मिलेगा। अगर पतंजलि यह साबित कर दे कि उसके विज्ञापन में किसी कंपनी को निशाना नहीं बनाया गया था, तो उसे आंशिक राहत मिल सकती है। अन्यथा, अदालत इस रोक को स्थायी आदेश (Permanent Injunction) में बदल सकती है।
अंत में यह कहा जा सकता है कि दिल्ली हाईकोर्ट का यह आदेश केवल एक कंपनी या विज्ञापन तक सीमित नहीं है, यह भारतीय विज्ञापन उद्योग के लिए दिशा-निर्देशक फैसला है। अब ब्रांड्स को यह समझना होगा कि उपभोक्ता को आकर्षित करने के लिए सकारात्मक प्रचार (Positive Promotion) ही स्थायी रणनीति है, क्योंकि दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश अंततः खुद की साख पर चोट करती है। डाबर को जहां इस फैसले से राहत मिली है, वहीं पतंजलि के सामने अब दोहरी चुनौती है एक, कानूनी लड़ाई लड़ना, और दूसरा, उपभोक्ताओं का भरोसा फिर से जीतना।
ये मामला यह दर्शाता है कि भारतीय बाजार में अब विज्ञापन केवल प्रचार का माध्यम नहीं रह गया है, बल्कि यह नैतिकता, विश्वास और पारदर्शिता की परीक्षा भी बन चुका है। पतंजलि बनाम डाबर की यह जंग आने वाले समय में भारत के FMCG उद्योग में विज्ञापन के तौर-तरीकों को परिभाषित करने वाली साबित हो सकती है।

