पतंजलि योगपीठ: आधुनिक भारत में योग, आयुर्वेद और आत्मनिर्भरता की प्रेरणा
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संवाद 24 (संजीव सोमवंशी)। पतंजलि योगपीठ भारतीय सांस्कृतिक और स्वास्थ्य विरासत का एक जीवंत प्रतीक है। पतंजलि योगपीठ आज केवल एक संस्थान नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय आंदोलन है जिसने योग, आयुर्वेद और स्वदेशी उत्पादों के माध्यम से भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित किया है।
बाबा रामदेव जी महाराज द्वारा स्थापित यह संस्था न केवल योग के प्रचार-प्रसार का केंद्र है, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक सेवा और राष्ट्र निर्माण के क्षेत्र में एक बहुआयामी पहल का प्रतिनिधित्व करती है। हरिद्वार की पावन भूमि पर स्थित पतंजलि योगपीठ ने पिछले दो दशकों में करोड़ों लोगों को योग की सरलता और आयुर्वेद की शक्ति से परिचित कराया है। यह संस्था महर्षि पतंजलि के योगसूत्रों से प्रेरित होकर स्थापित की गई, जो चित्त की वृत्तियों पर नियंत्रण के माध्यम से आत्मसाक्षात्कार का मार्ग प्रशस्त करती है। आज, जब विश्व स्वास्थ्य संकटों से जूझ रहा है, पतंजलि योगपीठ का योगदान और अधिक प्रासंगिक हो गया है। इस लेख में हम इसकी स्थापना, महत्वपूर्ण कार्यों, देश हित में योगदानों, प्रमुख सामाजिक योगदानों तथा सेवा कार्यों पर विस्तार से चर्चा करेंगे, ताकि पाठक इस महान संस्था की समग्र महत्ता को समझ सकें।
पतंजलि योगपीठ की नींव रखने वाले योगगुरु बाबा रामदेव जी महाराज का जन्म 25 दिसंबर 1965 को हरियाणा के सैयद गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। बचपन में ही उन्हें पक्षाघात की समस्या हुई, जिसका इलाज एलोपैथी दवाओं से न हो सका। इस संकट ने उन्हें योग की ओर आकर्षित किया। 14 वर्ष की आयु में वे गुरुकुल कालवा (जींद, हरियाणा) पहुंचे, जहां स्वामी बालदेव जी से योग, संस्कृत और वेदों का ज्ञान प्राप्त किया। बाद में, हिमालय की तपोभूमि में साधना करते हुए उन्होंने प्राणायाम और आसनों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया। 1995 में, आचार्य बालकृष्ण जी महाराज और स्वामी शंकरदेव जी महाराज के सहयोग से उन्होंने कनखल (हरिद्वार) में दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट की स्थापना की, जो पतंजलि योगपीठ का आधार बना। रामदेव जी का दर्शन सरल है: “योग से रोगमुक्ति, आयुर्वेद से स्वदेशी चिकित्सा और स्वाभिमान से राष्ट्र उत्थान।” उनकी टीवी श्रृंखलाओं जैसे ‘ओम योग साधना’ ने योग को घर-घर पहुंचाया। आज, वे पतंजलि योगपीठ के कुलपति हैं और आचार्य बालकृष्ण जी महासचिव हैं, जो आयुर्वेद के विशेषज्ञ हैं। रामदेव जी का जीवन निष्काम सेवा का उदाहरण है, जो संस्था को वैश्विक स्तर पर ले गया।
पतंजलि योगपीठ की औपचारिक स्थापना 6 अप्रैल 2006 को हरिद्वार के महर्षि दयानंद ग्राम में हुई, जो दिल्ली-हरिद्वार राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। यह संस्था महर्षि पतंजलि के नाम पर नामित है, जिन्होंने योगसूत्रों के माध्यम से योग को व्यवस्थित रूप प्रदान किया। स्थापना से पूर्व, 1995 में दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट की नींव रखी गई थी, जो कृपालु बाग आश्रम (कनखल, हरिद्वार) में स्थापित हुआ। रामदेव जी ने स्वामी शंकरदेव जी महाराज की प्रेरणा से यह ट्रस्ट बनाया, जिसका उद्देश्य योग और आयुर्वेद को जन-जन तक पहुंचाना था। 2006 में, 100 एकड़ से अधिक भूमि पर पतंजलि योगपीठ-1 का निर्माण शुरू हुआ, जो विश्व का सबसे बड़ा योग केंद्र बन गया। 2009 में पतंजलि योगपीठ-2 और योग ग्राम का विस्तार हुआ। संस्था का मुख्यालय हरिद्वार में है, लेकिन इसकी शाखाएं ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, नेपाल, मॉरीशस और यूके में फैली हैं। स्थापना का पृष्ठभूमि आधुनिक जीवनशैली से उत्पन्न रोगों का बढ़ता प्रकोप था। रामदेव जी ने ‘विश्व को रोगमुक्त बनाओ’ का संकल्प लिया। आज, 2025 में अपनी 19वीं वर्षगांठ मना रही यह संस्था 30 वर्षों की यात्रा (दिव्य योग मंदिर से गिनकर) में हजारों करोड़ रुपये की चैरिटी कर चुकी है। पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक कल्याण पर केंद्रित है।
पतंजलि योगपीठ का स्वरूप बहुआयामी है, जो योग, आयुर्वेद, शिक्षा और अनुसंधान को एकीकृत करता है। आज इसका मुख्य केंद्र हरिद्वार में 600 एकड़ से अधिक क्षेत्र में फैला है, जिसमें योगपीठ-1 (उपचार और अनुसंधान), योगपीठ-2 (शिक्षा और प्रशिक्षण) और योग ग्राम (प्राकृतिक चिकित्सा) शामिल हैं। महत्वपूर्ण कार्यों में दैनिक योग सत्र, प्राणायाम शिविर और टीवी प्रसारण प्रमुख हैं। रामदेव जी के नेतृत्व में ‘ओम योग साधना’ जैसे कार्यक्रमों ने करोड़ों दर्शकों को योग सिखाया। आयुर्वेद अनुसंधान में पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन (2010 में स्थापित) ने 50,000 से अधिक औषधीय पौधों का अध्ययन किया, जिससे ‘विश्व हर्बल एनसाइक्लोपीडिया’ का निर्माण हो रहा है। शिक्षा क्षेत्र में पतंजलि विश्वविद्यालय (2006) और आचार्यकुलम (2013) ने वैदिक-आधुनिक शिक्षा का समन्वय किया। आचार्यकुलम, जो सीबीएसई से संबद्ध है, ने 600 जिलों में 600 स्कूल खोलने का लक्ष्य रखा है। 2018 में इसके छात्रों ने 99% अंक प्राप्त कर रिकॉर्ड बनाया। पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज (2009) में 50 छात्रों की क्षमता है, जो बीएएमएस कोर्स चलाता है। योग ग्राम में प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र 2009 में स्थापित हुआ, जो 2020 की आग से उबरकर पुनः सक्रिय है। ये कार्य ‘एकात्म मानववाद’ पर आधारित हैं, जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को संतुलित करते हैं।
पतंजलि योगपीठ ने देश हित में अभूतपूर्व योगदान दिया है, जो स्वदेशी आंदोलन का आधुनिक रूप है। रामदेव जी ने ‘स्वदेशी समृद्धि’ का नारा देकर पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड (2006) स्थापित की, जो 2015-16 में 5000 करोड़ का कारोबार कर चुकी। यह कंपनी आयुर्वेदिक उत्पादों से बहुराष्ट्रीय कंपनियों को चुनौती देती है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हुई। 2018 में बीएसएनएल के साथ ‘स्वदेशी समृद्धि’ सिम कार्ड लॉन्च किया, जो डिजिटल स्वदेशी को बढ़ावा देता है। 2025 में मैग्ना जनरल इंश्योरेंस में बहुमत हिस्सेदारी खरीदकर स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र में प्रवेश किया। पर्यावरण संरक्षण में पतंजलि हर्बल गार्डन और जैव विविधता संरक्षण प्रमुख हैं। कोविड-19 महामारी में पतंजलि ने कोरोनिल किट वितरित की, हालांकि विवादास्पद रही। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (21 जून) की स्थापना में रामदेव जी का योगदान महत्वपूर्ण था, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने अपनाया। पतंजलि ने 118 वर्ष पुराने गुरुकुल कांगड़ी को पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया। 2025 में पतंजलि ने 5 लाख स्कूलों को भारतीय शिक्षा बोर्ड से जोड़ने का लक्ष्य रखा, जो शिक्षा क्रांति लाएगा। ये प्रयास राष्ट्र की आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक पुनरुत्थान को मजबूत करते हैं।
पतंजलि योगपीठ के सामाजिक योगदान समाज के हर वर्ग को सशक्त बनाने वाले हैं। शिक्षा में आचार्यकुलम ने वेद-विज्ञान का समन्वय कर ग्रामीण बच्चों को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान की। 2024 में गुरुकुलम और आचार्यकुलम का शिलान्यास हुआ, जो 500 करोड़ की लागत से विश्व का सबसे बड़ा गुरुकुल बनेगा। स्वास्थ्य क्षेत्र में पतंजलि अस्पताल (400 बेड) में 40 आयुर्वेद चिकित्सकों द्वारा दैनिक 50-200 मरीजों का उपचार होता है। 2025 में ‘इमरजेंसी एंड क्रिटिकल केयर हॉस्पिटल’ का उद्घाटन हुआ, जो आधुनिक और आयुर्वेद का समन्वय करता है। दलित और आदिवासी उत्थान में पतंजलि ने मुफ्त स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए। महिला सशक्तिकरण में ‘राष्ट्रीय सेवा भारती’ जैसे कार्यक्रम स्वावलंबन सिखाते हैं। सांस्कृतिक संरक्षण में गुरु पूर्णिमा और कांवड़ मेला के दौरान अखंड भंडारे आयोजित होते हैं, जहां रामदेव जी स्वयं सेवा करते हैं। पतंजलि ने 30 वर्षों में हजारों करोड़ की चैरिटी की, जिसमें आपदा राहत प्रमुख है। जोशीमठ आपदा (2023) में पुनर्वास कार्य किया। ये योगदान समाज को समावेशी और स्वावलंबी बनाते हैं, जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के सिद्धांत पर आधारित हैं।
पतंजलि योगपीठ का सेवा कार्य ‘सेवा ही संगठन’ के मंत्र पर आधारित है। योग शिविरों में करोड़ों लोगों को मुफ्त प्रशिक्षण दिया गया, जो पार्कों और घरों में प्राणायाम का प्रचार करता है। आयुर्वेदिक उपचार में दिव्य फार्मेसी (2012) ने जीएमपी प्रमाणित औषधियां वितरित कीं। कोविड-19 में 10 करोड़ से अधिक किट बांटे गए। आपदा राहत में 2001 गुजरात भूकंप, 2004 सुनामी और 2013 उत्तराखंड बाढ़ में स्वयंसेवक सक्रिय रहे। 2025 में कांवड़ मेले में अखंड भंडारे से लाखों कांवरियों को भोजन वितरित किया। ग्रामीण स्वास्थ्य में मोबाइल क्लिनिक और ‘आरोग्य रक्षक योजना’ प्रमुख हैं। पर्यावरण सेवा में ‘प्लास्टिक मुक्त भारत’ और वृक्षारोपण अभियान शामिल हैं। पतंजलि ने 50,000 औषधीय पौधों का संरक्षण किया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूएस ट्रस्ट (2008) ने योग कक्षाएं आयोजित कीं। ये कार्य बिना भेदभाव के किए जाते हैं, जो रामदेव जी की निष्काम सेवा भावना को दर्शाते हैं। पतंजलि ने 1 लाख करोड़ से अधिक चैरिटी की, जो मानव कल्याण का उत्कृष्ट उदाहरण है।
पतंजलि योगपीठ को विवादों का सामना करना पड़ा, जैसे कोविड दावों पर आईएमए का मुकदमा (2021), जो 2025 में नैनीताल हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। पर्यावरण प्रदूषण के आरोपों पर भी सफाई दी गई। फिर भी, संस्था ने अनुकूलन क्षमता दिखाई। 2025 में 30वीं वर्षगांठ पर रामदेव जी ने ‘पंच क्रांति’ की घोषणा की: शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वदेशी, नैतिकता और नशामुक्ति। डिजिटल युग में ‘बाबा रामदेव ऐप’ और ऑनलाइन शिविर चल रहे हैं। चुनौतियाँ जैसे सांस्कृतिक वैश्वीकरण और युवाओं का आकर्षण बनी हैं, किंतु वैदिक विज्ञान से इन्हें संबोधित किया जा रहा है।
पतंजलि योगपीठ बाबा रामदेव जी के दर्शन का जीवंत स्वरूप है, जो योग की ज्योति से विश्व को आलोकित करता है। इसकी स्थापना से लेकर आज तक के कार्यों ने भारत को स्वास्थ्य और सांस्कृतिक रूप से सशक्त बनाया। प्रमुख सदस्यों के समर्पण और सिद्धांतों की अमरता ने इसे वैश्विक बनाया। आने वाले समय में, पतंजलि को जलवायु परिवर्तन और डिजिटल नैतिकता जैसे मुद्दों पर नेतृत्व करना होगा। ‘विश्व को योगमय बनाओ’ का संदेश ही शांति का आधार बनेगा। पतंजलि न केवल एक संस्था है, बल्कि जीवन दर्शन है जो हर भारतीय को गौरवान्वित करता है।
पतंजलि योगपीठ ने भारत में योग, आयुर्वेद और स्वदेशी विचारधारा को पुनर्जीवित करके एक नया सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन लाया है। यह संस्थान केवल योग सिखाने का केंद्र नहीं, बल्कि “आत्मनिर्भर भारत” के निर्माण की दिशा में एक प्रेरणा है। स्वामी रामदेव जी और आचार्य बालकृष्ण जी ने यह सिद्ध कर दिया कि यदि भारतीय संस्कृति और आधुनिक विज्ञान का समन्वय किया जाए, तो भारत न केवल स्वस्थ, बल्कि आर्थिक रूप से भी सशक्त बन सकता है। पतंजलि योगपीठ का योगदान आज भारत की सीमाओं से परे जाकर पूरी दुनिया में भारतीय जीवनशैली और संस्कृति का प्रतीक बन चुका है। यह संस्थान आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाता है कि “योग केवल शरीर का नहीं, आत्मा का उत्थान है, आयुर्वेद केवल चिकित्सा नहीं, जीवन जीने की कला है, और पतंजलि केवल संस्था नहीं, भारत की आत्मा का जागरण है।”

