राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: राष्ट्र निर्माण की एक सदी पुरानी यात्रा
Share your love

संवाद 24 (संजीव सोमवंशी)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस RSS) भारतीय समाज और राष्ट्रवाद की एक ऐसी संस्था है, जिसने पिछले एक शताब्दी में हिंदू संस्कृति, सामाजिक एकता तथा देशभक्ति के मूल्यों को मजबूत करने में अभूतपूर्व भूमिका निभाई है। 2025 में अपनी शताब्दी पूर्ण करने वाली यह संस्था न केवल एक सांस्कृतिक संगठन है, बल्कि सामाजिक सेवा, आपदा राहत, शिक्षा, स्वास्थ्य और राष्ट्रीय एकीकरण के क्षेत्र में एक शक्तिशाली शक्ति के रूप में उभरी है।
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित आरएसएस ने कभी राजनीतिक दल के रूप में कार्य नहीं किया, किंतु इसके कई स्वयंसेवक राष्ट्र की सेवा में राजनीतिक रूप से भी समर्पित रहे हैं। कई मीडिया रिपोर्ट्स में भी संघ के कार्यों को एक स्वयंसेवी संगठन के रूप में चित्रित किया गया है, जो जमीनी स्तर पर एकता और सेवा पर जोर देता है, लेकिन कभी-कभी इस पर राजनीतिक प्रभाव के आरोप भी लगते रहे हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के पावन पर्व पर नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा की गई। हेडगेवार, जो एक चिकित्सक थे, ने ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में व्याप्त सामाजिक विघटन, सांप्रदायिक तनाव और हिंदू समाज की कमजोरी को देखते हुए एक ऐसा संगठन बनाने का संकल्प लिया, जो हिंदू एकता को मजबूत करे।
संगठन की प्रारंभिक शाखा हेडगेवार के निवास ‘हेडगेवार वाडा’ में ही लगाई गई, जिसमें मात्र 17 स्वयंसेवक शामिल थे। 17 अप्रैल 1926 को आयोजित एक बैठक में स्वयंसेवकों ने संगठन के नाम पर विचार-विमर्श किया। प्रस्तावित नामों में ‘जारी पटका मंडल’, ‘भारत उद्धारक मंडल’ और ‘हिंदू सेवक संघ’ शामिल थे, किंतु हेडगेवार के नेतृत्व में ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ नाम सर्वसम्मति से चुना गया, यह नाम संगठन की व्यापकता को दर्शाता है।
आरएसएस का मूल उद्देश्य स्वयंसेवकों में चरित्र निर्माण, शारीरिक प्रशिक्षण और बौद्धिक विकास के माध्यम से राष्ट्रभक्ति की भावना जगाना था। शाखाओं के माध्यम से दैनिक व्यायाम, प्रार्थना और चर्चा का प्रारूप अपनाया गया, जो आज भी जारी है। स्थापना के प्रथम वर्षों में संगठन ने महाराष्ट्र तक सीमित रहते हुए 1926 में पहली आधिकारिक शाखा स्थापित की, जो धीरे-धीरे पूरे भारत में फैल गई। बीबीसी की एक रिपोर्ट में इस स्थापना को हिंदू राष्ट्रवाद के उदय का प्रारंभिक बिंदु बताया गया है, जहां संघ को स्वयंसेवी संगठन के रूप में जमीनी कार्यों पर केंद्रित दर्शाया गया।
आरएसएस का संगठनात्मक स्वरूप अत्यंत सरल किंतु प्रभावी है। इसकी मूल इकाई ‘शाखा’ है, जो खुली जगहों पर एक घंटे की होती है, जिसमें व्यायाम, खेल, सूर्य नमस्कार, परेड, गीत और प्रार्थना शामिल होती है। वर्तमान में भारत में 83,000 से अधिक शाखाएं सक्रिय हैं, जो विश्व का सबसे बड़ा स्वैच्छिक संगठन बनाता है।
आरएसएस का स्वतंत्रता संग्राम में भी योगदान रहा था। इसके संस्थापक डॉ हेडगेवार स्वयं इसमें भाग लेने के कारण जेल गए। विभाजन के दौरान लाखों शरणार्थियों की सहायता की गई। महत्वपूर्ण कार्यों में ‘सेवा भारती’ के माध्यम से आपदा राहत प्रमुख है, जैसे 1971 के बांग्लादेश युद्ध में शरणार्थी शिविरों का संचालन। शिक्षा क्षेत्र में ‘विद्या भारती’ ने 12,000 से अधिक स्कूल स्थापित किए, जो ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करते हैं।
‘वनवासी कल्याण आश्रम’ के जरिए आदिवासी उत्थान पर जोर दिया गया, जिसमें एकल विद्यालयों के माध्यम से 30,000 से अधिक स्कूल संचालित हैं। आरएसएस ने कभी प्रत्यक्ष राजनीति नहीं की, किंतु इसके प्रेरणा से ‘भारतीय जनसंघ’ (1951) की स्थापना हुई, जो बाद में भाजपा बनी। संगठन के महत्वपूर्ण कार्यों में पर्यावरण संरक्षण, महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण विकास शामिल हैं, जो ‘एकात्म मानववाद’ के सिद्धांत पर आधारित हैं।
आरएसएस में सर्वोच्च दायित्व ‘सरसंघचालक’ का है, जो पूर्ववर्ती द्वारा नामांकित होता है और आजीवन रहता है। प्रथम सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार (1925-1940) थे, जिन्होंने संगठन को मजबूत आधार प्रदान किया। 1940 में उनका निधन होने के बाद द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर (गुरुजी, 1940-1973) बने, जिन्होंने आरएसएस को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार दिया और ‘बंच ऑफ थॉट्स’ जैसी रचनाओं से विचारधारा को मजबूत किया। तृतीय सरसंघचालक बालासाहेब देवरस (1973-1994) ने सामाजिक सेवा पर जोर दिया; उनके कार्यकाल में अस्पृश्यता के विरुद्ध अभियान चला और आपातकाल (1975-1977) में भूमिगत संघर्ष किया। चतुर्थ सरसंघचालक प्रो. राजेंद्र सिंह (राज्जू भैया, 1994-2000) ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण को संगठन में समाहित किया। पंचम सरसंघचालक के.एस. सुदर्शन (2000-2009) ने वैश्विक विस्तार पर ध्यान दिया। वर्तमान छठे सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत (2009 से) ने समावेशी राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया हैं। इन छह सरसंघचालकों ने आरएसएस को एक सांस्कृतिक आंदोलन से वैश्विक संगठन में परिवर्तित किया। बीबीसी के एक लेख में भागवत के नेतृत्व को ‘समावेशी लेकिन सतर्क’ बताया गया, जहां संघ के सामाजिक कार्यों को राजनीतिक प्रभाव से अलग रखने पर जोर दिया।
आरएसएस के प्रमुख सदस्यों ने राष्ट्र सेवा में अमूल्य योगदान दिया। संस्थापक सदस्यों में बालाजी हुद्दार, भाऊजी कावरे, बापूराव भेड़ी, अन्ना सोहनी और विश्वनाथराव केलकर शामिल थे, जिन्होंने प्रारंभिक शाखाओं का विस्तार किया। आधुनिक काल में नरेंद्र मोदी, वर्तमान प्रधानमंत्री, एक पूर्व प्रचारक हैं, जिन्होंने गुजरात से राष्ट्रीय स्तर तक संघ विचार को पहुंचाया। अमित शाह, गृह मंत्री, भी संघ की शाखाओं से जुड़े रहे। अन्य प्रमुख सदस्यों में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, नितिन गडकरी आदि शामिल हैं, जिन्होंने राजनीति में संघ की विचारधारा को मजबूत किया।
संघ के स्वयंसेवक वो लाखों अज्ञात योद्धा हैं, जो शाखाओं से लेकर सेवा कार्यों तक सक्रिय हैं। ये सदस्य जाति-धर्म से परे एक परिवार का निर्माण करते हैं, जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के सिद्धांत पर आधारित है।
आरएसएस पर स्वतंत्र भारत में तीन बार प्रतिबंध लगाए गए। प्रथम प्रतिबंध 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के बाद लगाया गया। 16 माह भूमिगत संघर्ष के बाद, जब कोई प्रमाण नहीं मिला तब 12 जुलाई 1949 को प्रतिबंध हटाया गया। द्वितीय प्रतिबंध 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल घोषणा के दौरान लगाया गया, जो 23 मार्च 1977 को जनता पार्टी सरकार द्वारा हटाया गया। इस दौरान स्वयंसेवकों ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, हजारों की संख्या में स्वयंसेवकों को बंदी बनाया गया। तृतीय प्रतिबंध 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद लगाया गया, किंतु 1993 में हटाया गया, क्योंकि हिंसा में संघ की कोई भूमिका सिद्ध नहीं हुई। इसके अलावा, 1966 में सरकारी कर्मचारियों पर संघ गतिविधियों में भागीदारी का प्रतिबंध लगाया गया, जो 9 जुलाई 2024 को मोदी सरकार द्वारा हटाया गया। ये प्रतिबंध आरएसएस को और मजबूत बनाते गए। बीबीसी के लेखों में इन प्रतिबंधों को संघ की ‘राजनीतिक परीक्षा’ के रूप में वर्णित किया गया, जहां संगठन ने सेवा कार्यों से अपनी छवि बनाई।
आरएसएस ने देश हित में अनेक कार्य किए, जो राष्ट्रवाद की भावना से ओतप्रोत हैं। स्वतंत्रता संग्राम में हेडगेवार की गिरफ्तारी से लेकर 1947 के विभाजन में शरणार्थी पुनर्वास तक, संघ ने मानवीय सहायता प्रदान की। 1962 के भारत-चीन युद्ध में स्वयंसेवकों ने सीमा पर सहायता की, जबकि 1965 और 1971 के पाकिस्तान युद्धों में रक्तदान और चिकित्सा शिविर चलाए। 1999 के कारगिल युद्ध में भी सक्रिय भूमिका निभाई। राजनीतिक रूप से, संघ ने भारतीय जनसंघ की स्थापना प्रेरित की, जो भाजपा का आधार बनी।
वर्तमान में, संघ की विचारधारा ने राम जन्मभूमि आंदोलन को सफल बनाया, जो सांस्कृतिक पुनरुत्थान का प्रतीक है। पर्यावरण संरक्षण में ‘गंगा शुद्धिकरण’ और वृक्षारोपण अभियान प्रमुख हैं। वैश्विक स्तर पर, 80 से अधिक देशों में ‘हिंदू स्वयंसेवक संघ’ के रूप में कार्यरत, एनआरआई समुदाय को एकजुट करता है। ये कार्य राष्ट्र की अखंडता और आत्मनिर्भरता को मजबूत करते हैं।
आरएसएस के सामाजिक योगदान बहुआयामी हैं। अस्पृश्यता उन्मूलन में बालासाहेब देवरस ने 1974 में घोषणा की कि ‘अस्पृश्यता यदि गलत नहीं, तो दुनिया में कुछ भी गलत नहीं’। इससे दलित उत्थान अभियान तेज हुआ। ‘समता यात्रा’ के माध्यम से जातिगत भेदभाव मिटाने का प्रयास किया गया। महिला सशक्तिकरण में ‘राष्ट्रीय सेवा भारती’ ने स्वावलंबन कार्यक्रम चलाए।
शिक्षा के क्षेत्र में विद्या भारती ने ग्रामीण भारत को सशक्त बनाया, जहां 40 लाख से अधिक छात्र पढ़ते हैं। आदिवासी क्षेत्रों में वनवासी कल्याण आश्रम ने स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक विकास पर कार्य किया। कोविड-19 महामारी में स्वयंसेवकों ने 10 करोड़ से अधिक भोजन पैकेट वितरित किए और 736 एनजीओ के माध्यम से सहायता पहुंचाई। ये योगदान समाज को समावेशी बनाने में सहायक सिद्ध हुए।
आरएसएस का सेवा कार्य ‘सेवा ही संगठन’ के मंत्र पर आधारित है। आपदा राहत में उत्कृष्ट योगदान है; 2001 के गुजरात भूकंप में 50,000 से अधिक स्वयंसेवक ने पुनर्वास कार्य किया। 2004 के हिंद महासागर सुनामी में तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में हजारों प्रभावितों की सहायता की। 2013 की उत्तराखंड बाढ़ में 1 लाख से अधिक लोगों को बचाया। कोविड-19 में ‘सेवा निधि’ से 11 करोड़ रुपये एकत्र कर चिकित्सा सुविधाएं प्रदान कीं। ग्रामीण स्वास्थ्य में ‘ईकलव्य मॉडल’ स्कूल और मोबाइल क्लिनिक चलाए जाते हैं। पर्यावरण सेवा में ‘प्लास्टिक मुक्त भारत’ अभियान शामिल है। ये कार्य बिना किसी भेदभाव के किए जाते हैं, जो संघ की समर्पण भावना को दर्शाते हैं। बीबीसी की रिपोर्ट्स में कोविड राहत को ‘तेज़ और प्रभावी’ बताया गया, जहां संघ के 736 एनजीओ की भूमिका प्रमुख रही।
आरएसएस के सेवा प्रकल्प समाज के हर वर्ग तक पहुंचने वाले हैं, जो शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास और पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में फैले हुए हैं। ‘सेवा भारती’ प्रमुख प्रकल्प है, जो 57,000 से अधिक सामाजिक-आर्थिक परियोजनाओं का संचालन करती है। इसमें आपदा राहत, स्वास्थ्य शिविर, स्वरोजगार प्रशिक्षण और महिला सशक्तिकरण शामिल हैं। 2014 तक सेवा भारती के 928 एनजीओ सक्रिय थे, जो ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य और शिक्षा पर फोकस करते हैं।
‘लोक भारती’ ग्रामीण विकास पर केंद्रित है, जो 800 से अधिक गांवों को स्वावलंबी बनाने का लक्ष्य रखती है। ‘दीन दयाल शोध संस्थान’ के माध्यम से 500 गांवों में आर्थिक उत्थान कार्य हो चुके हैं। पर्यावरण में ‘गंगा शुद्धिकरण’ और वृक्षारोपण जैसे प्रकल्प प्रमुख हैं। कोविड-19 में सेवा प्रकल्पों ने 10 करोड़ भोजन पैकेट वितरित किए। ये प्रकल्प ‘एकात्म मानववाद’ पर आधारित हैं, जो बिना प्रचार के जमीनी स्तर पर कार्य करते हैं।
वनवासी उत्थान का प्रतीक, वनवासी कल्याण आश्रम आरएसएस का एक प्रमुख अनुषांगिक संगठन है, जो 1952 में जशपुर (छत्तीसगढ़) में बालासाहेब देशपांडे द्वारा स्थापित किया गया। इसका उद्देश्य आदिवासी (वनवासी) समाज का सर्वांगीण विकास करना है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक सशक्तिकरण और सांस्कृतिक संरक्षण शामिल हैं। आश्रम ने 52,000 से अधिक गांवों और 447 जिलों में कार्य फैलाया है, जहां 20,000 से अधिक सेवा प्रकल्प चल रहे हैं। शिक्षा में एकल विद्यालयों के माध्यम से 30,000 स्कूल संचालित हैं, जो 1 लाख से अधिक छात्रों को लाभ पहुंचाते हैं।
स्वास्थ्य क्षेत्र में ‘आरोग्य रक्षक योजना’ के तहत 866 चिकित्सा रक्षक कार्यरत हैं, जो मोबाइल क्लिनिक और अस्पताल चलाते हैं। खेलकूद आयाम में राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं, जहां हजारों आदिवासी युवा भाग लेते हैं। आर्थिक उत्थान के लिए स्वरोजगार प्रशिक्षण और ग्राम विकास कार्य प्रमुख हैं, जैसे छत्तीसगढ़ के जशपुर में छात्रावास और कौशल विकास केंद्र।
वनवासी कल्याण आश्रम ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति स्थापना में भी भूमिका निभाई, जहां शिक्षा और संस्कृति के माध्यम से युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ा। 70 वर्षों में आश्रम ने 500 से अधिक अस्पताल, 1000 छात्रावास और लाखों लाभार्थियों को सशक्त बनाया। बीबीसी की रिपोर्ट्स में आश्रम के कार्यों को ‘आदिवासी सशक्तिकरण’ का माध्यम बताया गया, हालांकि कभी-कभी हिंदुत्व प्रभाव का उल्लेख भी।
बीबीसी द्वारा संघ के कार्यों का उल्लेख: एक संतुलित दृष्टिकोण – बीबीसी ने आरएसएस के कार्यों पर अनेक लेख प्रकाशित किए, जो संघ की जटिल छवि को उजागर करते हैं। 2025 के शताब्दी वर्ष पर बीबीसी की रिपोर्ट ‘आरएसएस: भारत का सबसे शक्तिशाली हिंदू राष्ट्रवादी संगठन 100 वर्ष पूर्ण करता है’ में संघ को स्वयंसेवी संगठन के रूप में वर्णित किया गया, जो जमीनी स्तर पर आपदा राहत, शिक्षा और सामाजिक एकता पर कार्य करता है। रिपोर्ट में मोहन भागवत के भाषणों का उल्लेख है, जहां जलवायु परिवर्तन, आर्थिक असमानता और पड़ोसी देशों की अस्थिरता पर संघ के दृष्टिकोण को सराहा गया।
एक अन्य लेख ‘संघ के सौ साल: जानिए इस संगठन से जुड़ी ज़रूरी बातें’ में शाखाओं, स्वयंसेवकों की संख्या (लगभग 1 करोड़) और सेवा कार्यों को विस्तार से बताया गया, साथ ही राजनीतिक प्रभाव के आरोपों का संतुलित विश्लेषण किया।
बीबीसी के 2015 के लेख ‘भारत में आरएसएस के 10 योगदान’: बीबीसी हिंदी के 22 अक्टूबर 2015 को प्रकाशित लेख ‘भारत में आरएसएस के 10 योगदान’ में पत्रकार ज्ञानेंद्र बरतरिया ने आरएसएस के उन योगदानों पर प्रकाश डाला है, जो अक्सर अनदेखे रह जाते हैं। लेख का उद्देश्य संघ को केवल राजनीतिक या सांप्रदायिक संगठन के रूप में न देखकर उसके सामाजिक, राष्ट्रीय और मानवीय कार्यों को उजागर करना है। बरतरिया ने लिखा है कि आरएसएस ने वास्तव में भारत के सामाजिक उत्थान और राष्ट्र रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
1. स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी – आरएसएस की स्थापना से ही स्वयंसेवक स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहे। डॉ. हेडगेवार स्वयं 1930 के सत्याग्रह में भाग लेने के कारण जेल गए। लेख में उल्लेख है कि संघ ने प्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस के आंदोलनों में सहयोग किया, हालांकि कभी राजनीतिक दल न बनने का संकल्प लिया। इससे स्वयंसेवकों में राष्ट्रभक्ति की भावना जागृत हुई, जो बाद के वर्षों में राष्ट्र सेवा का आधार बनी।
2. विभाजन के समय शरणार्थी सहायता – 1947 के विभाजन काल में लाखों हिंदू शरणार्थियों को पाकिस्तान से भारत लाने और उनके पुनर्वास में आरएसएस ने अग्रणी भूमिका निभाई। बरतरिया ने लिखा कि जब सरकारी तंत्र अभिभूत था, तब स्वयंसेवकों ने रेलवे स्टेशनों, शिविरों में भोजन, चिकित्सा और सुरक्षा प्रदान की। यह सहायता न केवल मानवीय थी, बल्कि सामाजिक एकीकरण का माध्यम भी बनी।
3. 1962 के भारत-चीन युद्ध में योगदान – चीन आक्रमण के दौरान आरएसएस ने सीमा क्षेत्रों में स्वयंसेवकों को भेजा, जहां उन्होंने सैनिकों के लिए आवश्यक सामग्री पहुंचाई और स्थानीय लोगों को संगठित किया। लेख में कहा गया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने भी इस सहायता की सराहना की, जो संघ की राष्ट्रीय एकता की भावना को दर्शाती है।
4. 1965 के भारत-पाक युद्ध में सहयोग – इस युद्ध में स्वयंसेवकों ने रक्तदान शिविर, चिकित्सा सहायता और मोर्चा क्षेत्रों में सैनिकों का मनोबल बढ़ाने का कार्य किया। बरतरिया ने उल्लेख किया कि लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में संघ की भूमिका ने युद्ध प्रयासों को मजबूत किया, जो ‘जय जवान’ के नारे को व्यावहारिक रूप प्रदान करती है।
5. 1971 के बांग्लादेश युद्ध में शरणार्थी सेवा – पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए लाखों शरणार्थियों के लिए आरएसएस ने विशाल शिविर स्थापित किए, जहां भोजन, आश्रय और शिक्षा प्रदान की गई। लेख में वर्णन है कि यह सहायता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराही गई, जो संघ के मानवीय दृष्टिकोण को प्रमाणित करती है।
6. आपातकाल (1975-1977) में लोकतंत्र रक्षा – इंदिरा गांधी के आपातकाल के दौरान आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया गया, किंतु स्वयंसेवक भूमिगत होकर प्रेस की स्वतंत्रता, नागरिक अधिकारों और लोकतांत्रिक आंदोलनों का समर्थन करते रहे। बरतरिया ने लिखा कि संघ के प्रयासों ने 1977 के चुनावों में जनता पार्टी की जीत में योगदान दिया, जो तानाशाही के विरुद्ध संघर्ष का प्रतीक है।
7. कश्मीर में सीमा निगरानी और सहायता – जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों में आरएसएस ने स्वयंसेवकों के माध्यम से घुसपैठ की निगरानी और स्थानीय सुरक्षा में सहयोग किया। लेख में कहा गया कि यह कार्य सेना के साथ समन्वय में किया गया, जो राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने का उदाहरण है।
8. शिक्षा और ग्रामीण विकास – विद्या भारती जैसे प्रकल्पों के माध्यम से आरएसएस ने ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में हजारों स्कूल स्थापित किए। बरतरिया ने उल्लेख किया कि ये प्रयास आधुनिक शिक्षा के साथ सांस्कृतिक मूल्यों को जोड़ते हैं, जिससे लाखों बच्चों को लाभ हुआ।
9. आपदा प्रबंधन में अग्रणी भूमिका – भूकंप, बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाओं में आरएसएस की त्वरित प्रतिक्रिया प्रसिद्ध है। लेख में 2001 गुजरात भूकंप और 2004 सुनामी के उदाहरण दिए गए, जहां स्वयंसेवकों ने बचाव, राहत और पुनर्वास कार्य में लाखों लोगों की जान बचाई।
10. सामाजिक एकता और अस्पृश्यता उन्मूलन – जातिवाद और सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध आरएसएस के अभियान, जैसे ‘समता यात्रा’, ने दलित और पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा से जोड़ा। बरतरिया ने निष्कर्ष निकाला कि ये योगदान संघ को केवल विचारधारात्मक संगठन से परे एक सामाजिक शक्ति बनाते हैं, हालांकि विवाद बने रहते हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक शताब्दी की यात्रा में राष्ट्र निर्माण का प्रतीक बन चुका है। डॉ. हेडगेवार के दर्शन से प्रेरित होकर इसके स्वयंसेवक आज भी ‘कृण्वन्तो विश्व आर्यम्’ के आदर्श पर चलते हैं। प्रतिबंधों से उबरकर सेवा कार्यों, सेवा प्रकल्पों और बनवासी कल्याण आश्रम जैसे प्रयासों में अग्रणी बनना इसका प्रमाण है। बीबीसी के लेख, विशेषकर 2015 के 10 योगदानों वाला, संघ के जमीनी कार्यों को मान्यता देते हैं, जो वैश्विक स्तर पर इसकी प्रासंगिकता दर्शाते हैं। आने वाले समय में, आरएसएस को जलवायु परिवर्तन, डिजिटल नैतिकता और वैश्विक एकता जैसे मुद्दों पर नेतृत्व करना होगा। यह संगठन न केवल हिंदू एकता का प्रतीक है, बल्कि समग्र भारतीयता का उत्सव है।






