मृत्यु शैया पर पड़े रावण के तीन उपदेश जो आज भी जीवन बदल सकते हैं।

संवाद 24 (संजीव सोमवंशी)। रावण-लक्ष्मण संवाद: मृत्यु शैया पर दिया गया नीति, शक्ति और जीवन का अंतिम उपदेश। एक ऐसा संवाद जो आज भी प्रबंधन, राजनीति और जीवन-दर्शन के हर क्षेत्र में प्रासंगिक है।

लंका का रण समाप्त हो चुका था। रावण अपने पराक्रम, विद्वता और गर्व के साथ धराशायी पड़ा था मरणासन्न अवस्था में। उसका साम्राज्य भस्म हो चुका था, पुत्र और सेनाएँ नष्ट हो गई थीं। उस समय भगवान श्रीराम अपने सामने पड़े इस महापंडित को देखकर बोले “लक्ष्मण, इस संसार से नीति, राजनीति और शक्ति का महान् विद्वान विदा ले रहा है। जाओ, उससे जीवन के वे सूत्र सीखो जो और कोई नहीं सिखा सकता।”

लक्ष्मण जी ने आज्ञा मानी और वे रावण के पास पहुँचे। किंतु अहंकार और वैर की स्मृतियों में उलझे हुए, वे रावण के सिर की ओर खड़े हो गए। रावण ने मौन साध लिया न कोई दृष्टि, न कोई वाणी। लक्ष्मण लौट आए और रामजी को बताया कि रावण ने कुछ नहीं कहा।

तब भगवान श्रीराम मुस्कुराए और बोले “लक्ष्मण, जब भी किसी से ज्ञान प्राप्त करना हो तो उसके चरणों के पास खड़ा होना चाहिए, सिर के पास नहीं। ज्ञान तब मिलता है जब हम विनम्र होते हैं, जब हमारे भीतर अहंकार नहीं होता।”

यह सुनते ही लक्ष्मण जी पुनः लौटे और इस बार रावण के चरणों की ओर झुककर खड़े हो गए। उसी क्षण मृत्यु के समीप पड़े रावण की वाणी खुली, और वह महाज्ञानी अपने अंतिम क्षणों में भी एक गुरु बन गया।

रावण ने शांत स्वर में कहा “लक्ष्मण, मैं मृत्यु के द्वार पर हूँ, पर आज भी जीवन का सत्य स्पष्ट देख पा रहा हूँ। सुनो, मैं तुम्हें तीन बातें बताता हूँ, जिन्हें यदि कोई मनुष्य समझ ले तो जीवन में कभी पराजित नहीं होता।”

पहला उपदेश – 
शुभ कार्य में विलंब मत करो (शुभस्य शीघ्रम्)
रावण ने गहरी साँस लेते हुए कहा “पहली बात, शुभ कार्य को कभी टालना नहीं चाहिए। शुभ कर्म जितनी जल्दी हो सके कर डालना चाहिए और अशुभ को जितना टाल सको, टालते रहो। यही जीवन की पहली नीति है।” वह आगे बोला, “मैंने श्रीराम को समय रहते पहचान नहीं पाया। मुझे ज्ञात था कि वे कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं, पर मेरा अहंकार मुझे उनकी शरण में जाने से रोकता रहा। मैंने भलाई का अवसर गँवा दिया और परिणामस्वरूप आज विनाश की शैया पर हूँ। जो शुभ है, उसे करने में विलंब करना स्वयं अपने भाग्य को रोकना है।”

रावण का यह पहला उपदेश आज भी समय प्रबंधन और निर्णय क्षमता का सर्वोच्च उदाहरण माना जाता है। अवसर, समय और सत्य ये तीनों जीवन में दोबारा नहीं मिलते। जो व्यक्ति सही समय पर सही निर्णय लेता है, वही सफल होता है।

दूसरा उपदेश – 
अपने शत्रु को कभी तुच्छ मत समझो
थोड़ी देर के मौन के बाद रावण ने कहा “दूसरी बात, अपने प्रतिद्वंद्वी या शत्रु को कभी छोटा मत समझना। यही मेरी दूसरी और सबसे बड़ी भूल थी।” उसकी आँखों में पश्चात्ताप झलकने लगा। “मैंने अपने शत्रु श्रीराम और उनकी वानर सेना को कमज़ोर समझा। मैंने सोचा साधारण वनवासी और वानर भला क्या कर लेंगे? लेकिन यही वे थे जिन्होंने मेरी लाखों सेना को नष्ट कर दिया। मैंने ब्रह्मा से वरदान माँगते समय भी अहंकार में कहा था कि देवता, राक्षस, नाग, यक्ष कोई मुझे न मार सके पर मनुष्य और वानर का उल्लेख नहीं किया, क्योंकि उन्हें मैं तुच्छ समझता था। वही मेरी मृत्यु का कारण बने।”

रावण के इस कथन में आज की दुनिया के लिए गहरा संदेश छिपा है कभी किसी को कमज़ोर मत आँको। प्रतिस्पर्धा, राजनीति या कार्यक्षेत्र हर जगह यही नीति लागू होती है। जो छोटा दिखता है, वही कभी-कभी सबसे बड़ा सबक सिखा जाता है।

तीसरा उपदेश – 
जीवन के रहस्य किसी को न बताओ
रावण ने अपनी आखिरी साँसों में तीसरी शिक्षा दी “लक्ष्मण, जीवन के कुछ रहस्य अपने पास ही रखने चाहिए। हर व्यक्ति के जीवन में कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें प्रकट नहीं करना चाहिए। मैंने यह भूल की कि अपने ही भाई विभीषण को अपनी मृत्यु का रहस्य बता दिया। वही मेरे विनाश का कारण बना। जो व्यक्ति अपने गुप्त रहस्य सबको बता देता है, वह स्वयं अपने पतन का मार्ग खोल देता है।”

यह तीसरा उपदेश केवल युद्धनीति नहीं, बल्कि जीवन-नीति का शाश्वत सत्य है। व्यावसायिक जीवन, राजनीति या व्यक्तिगत संबंध हर जगह यह बात लागू होती है कि अपनी रणनीति, अपनी कमजोरी और अपने उद्देश्य को सबके सामने न रखें। रहस्य ही सुरक्षा है, और मौन ही सबसे बड़ा कवच।

इतना कहकर रावण ने अपनी आँखें बंद कर लीं। वायुमंडल में मौन छा गया। लक्ष्मण ने नतमस्तक होकर प्रणाम किया। वह समझ गए कि यह मृत्यु किसी राक्षस की नहीं, बल्कि एक ऐसे विद्वान की थी जो ज्ञान, शक्ति और राजनीति का धनी था, परंतु अपने अहंकार के कारण पतित हो गया।

रावण की ये तीन शिक्षाएँ आज भी अमर हैं।
1. शुभ कार्य में विलंब मत करो,
2. अपने शत्रु को कभी तुच्छ मत समझो,
3. और अपने रहस्यों की रक्षा करो।

यदि मनुष्य इन तीन सिद्धांतों का पालन कर ले, तो जीवन में न असफलता का भय रहता है, न पछतावे का बोझ। रामायण का यह प्रसंग केवल एक कथा नहीं, बल्कि एक दर्पण है जो दिखाता है कि ज्ञान की ऊँचाई भी तब व्यर्थ हो जाती है जब उसके साथ विनम्रता न हो।

रावण हार गया, क्योंकि उसने समय की कीमत नहीं जानी, वह नष्ट हुआ, क्योंकि उसने दूसरों को छोटा समझा, और वह मरा, क्योंकि उसने अपने ही रहस्यों का द्वार खोल दिया। इसलिए श्रीराम ने कहा था “रावण को केवल रावण मत समझो, वह नीति का ग्रंथ है। उसकी गलतियों से सीखना ही सच्ची विजय है।”

रावण-लक्ष्मण संवाद हमें यह सिखाता है कि असली विद्या वही है जो मृत्यु के क्षणों में भी ज्ञान दे सके। रावण की चूकें ही उसका उपदेश बन गईं, और यही उसके जीवन की सबसे बड़ी विडंबना भी। आज जब हम आधुनिक जीवन की दौड़ में हैं, तब यह कथा स्मरण कराती है “अवसर को न टालो, दूसरों को कम न समझो, और अपने रहस्यों को बचाकर रखो, यही सफलता की तीन कुंजियाँ हैं।”

Samvad 24 Office
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