मोटर दुर्घटना मुआवजा याचिकाओं को समय सीमा के आधार पर खारिज न किया जाए: सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश
Share your love

संवाद 24 दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश जारी करते हुए देशभर के मोटर दुर्घटना दावा अधिकरणों (MACT) और उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया है कि मोटर दुर्घटना मुआवजे से संबंधित किसी भी याचिका को केवल देरी (Limitation) के आधार पर खारिज न किया जाए।
यह आदेश उस याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया, जिसमें मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166(3) को चुनौती दी गई है। इस संशोधन के तहत दुर्घटना के दिनांक से केवल छह महीने के भीतर ही मुआवजा दावा याचिका दाखिल करने की समय सीमा तय की गई थी। यह प्रावधान वर्ष 2019 के संशोधन द्वारा जोड़ा गया था और 1 अप्रैल 2022 से लागू हुआ।
न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की खंडपीठ ने कहा कि देशभर में इस संशोधन को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं लंबित हैं। इसलिए, इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय का प्रभाव सभी मामलों पर पड़ सकता है। इसी आधार पर कोर्ट ने सभी पक्षों को दो सप्ताह के भीतर अपनी दलीलें पूरी करने का निर्देश दिया और मामले को 25 नवंबर के लिए पुनर्निर्धारित किया। कोर्ट ने स्पष्ट कहा: “जब तक यह मामला लंबित है, तब तक कोई भी दावा याचिका केवल इस आधार पर कि वह धारा 166(3) में तय समय सीमा से बाहर है, खारिज नहीं की जाएगी।”
याचिकाकर्ता, जो पेशे से वकील हैं, ने तर्क दिया है कि यह संशोधन न केवल मनमाना है बल्कि सड़क दुर्घटना पीड़ितों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी करता है। उनका कहना है कि छह महीने की कठोर सीमा पीड़ितों के लिए न्याय प्राप्त करना कठिन बना देती है, जिससे इस कल्याणकारी क़ानून का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।
गौरतलब है कि 1988 के अधिनियम में पहले छह माह की समय सीमा थी, जिसे 1994 के संशोधन के बाद हटा दिया गया था। लेकिन 2019 के संशोधन ने फिर से वही समय सीमा लागू कर दी।
याचिका में कहा गया है कि यह संशोधन बिना उचित विचार-विमर्श, विधि आयोग की सिफारिश या हितधारकों से परामर्श के लागू किया गया, इसलिए इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के उल्लंघन के आधार पर निरस्त किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब अंतिम निर्णय आने तक किसी भी मोटर दुर्घटना मुआवजा याचिका को देरी के आधार पर खारिज नहीं किया जाएगा।



