संघ की शाखा से संयुक्त राष्ट्र तक: मोदी और RSS की योग यात्रा।
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संवाद 24 (संजीव सोमवंशी)। भारतीय संस्कृति के गहरे अध्येता और योग साधक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग को भारत की “सॉफ्ट पावर” के रूप में विश्व मंच पर स्थापित किया है। उनका मानना है कि “योग केवल व्यायाम नहीं, बल्कि आत्मिक एकता और सार्वभौमिक समरसता का प्रतीक है।
“योग, भारत की आत्मा से विश्व मानवता तक” भारत की प्राचीन संस्कृति में योग केवल शरीर को स्वस्थ रखने का साधन नहीं, बल्कि जीवन की समग्र साधना और आत्म-उन्नति का मार्ग है। योग का अर्थ है “जोड़ना”। यह जोड़ है शरीर, मन, आत्मा और परमात्मा के बीच।
आज जब विश्व मानसिक तनाव, जीवनशैली संबंधी रोगों और असंतुलन से जूझ रहा है, तब भारत ने योग के माध्यम से मानवता को संतुलन और शांति का मार्ग दिखाया है। इस पुनर्जागरण के केंद्र में हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो एक ओर योग को विश्व मंच पर भारतीय पहचान बना चुके हैं, और दूसरी ओर, स्वयं एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के संस्कारों से प्रेरित योग साधक हैं।
योग भारतीय दर्शन का अभिन्न हिस्सा है महर्षि पतंजलि से लेकर स्वामी विवेकानंद, स्वामी शिवानंद, और बाबा रामदेव तक इसकी परंपरा निरंतर प्रवाहित रही है। योग व्यक्ति को सत्य, संयम, आत्मानुशासन और ईश्वरीय एकता की ओर ले जाता है।
प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दोनों का मानना है कि “योग केवल व्यायाम नहीं, बल्कि जीवन को अनुशासन और समर्पण के मार्ग पर चलाने वाली आध्यात्मिक साधना है।”
प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की योग के क्षेत्र में भूमिका –
योग को विश्व मंच पर लाने का ऐतिहासिक प्रयास
27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा “योग प्राचीन भारतीय परंपरा का अनमोल उपहार है। यह मन और शरीर, विचार और कर्म, संयम और संतुलन का प्रतीक है।” इस एक प्रस्ताव ने इतिहास रच दिया। 177 देशों ने इसे समर्थन दिया और 21 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (International Day of Yoga)’ घोषित किया गया। यह दिन आज 190 से अधिक देशों में मनाया जाता है जहाँ करोड़ों लोग भारतीय योग के प्रति श्रद्धा और अपनापन प्रदर्शित करते हैं। यह न केवल भारत की सांस्कृतिक विजय थी, बल्कि मोदी की “सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी” की एक ऐतिहासिक सफलता भी थी।
योग को शासन व्यवस्था और नीति का अंग बनाना
प्रधानमंत्री मोदी ने योग को केवल प्रचार तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे नीति निर्माण और शासन प्रणाली का हिस्सा बनाया। इस संदर्भ में उनके द्वारा उठाए गए प्रमुख कदम निम्नलिखित है –
1. AYUSH मंत्रालय का सशक्तीकरण: योग, आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी को एकीकृत मंत्रालय के अंतर्गत लाया गया। इसका उद्देश्य पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धतियों को विश्वसनीयता और संस्थागत रूप देना था।
2. योग प्रमाणन बोर्ड (Yoga Certification Board): योग शिक्षकों और संस्थानों को मानकीकृत प्रमाणपत्र देने के लिए गठित किया गया। इससे योग शिक्षण को एक पेशेवर पहचान मिली।
3. शिक्षा में योग का समावेश: नई शिक्षा नीति (NEP-2020) के तहत योग को स्कूली और विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम में जोड़ा गया। कई राज्यों में “योग शिक्षक” पदों का सृजन हुआ। देशभर में योग विश्वविद्यालयों और प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना को बढ़ावा दिया गया। योग प्रशिक्षकों को कौशल विकास मिशन के तहत व्यावसायिक अवसर दिए गए। इस प्रकार मोदी जी ने योग को “व्यक्तिगत साधना” से आगे बढ़ाकर “राष्ट्रीय और वैश्विक आंदोलन” में बदल दिया।
4. योग और विज्ञान: AIIMS, ICMR और CSIR जैसे संस्थानों में योग पर वैज्ञानिक अनुसंधान प्रारंभ करवाए गए। इससे योग को आधुनिक चिकित्सा के साथ जोड़ने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
योग को जन आंदोलन में बदलना
प्रधानमंत्री मोदी ने योग को केवल आध्यात्मिक या स्वास्थ्य साधन नहीं, बल्कि कुछ प्रमुख अभियानों के माध्यम से इसे “जन-जन का आंदोलन” बनाया। आज के इस डिजिटल युग में मोदी जी ने “योग एट होम, योग विद फैमिली” अभियान के माध्यम से महामारी के दौरान योग को घर-घर पहुँचाया। MyGov और Fit India Movement के माध्यम से लाखों युवाओं को योग से जोड़ा।
1. Fit India Movement (2019): इसमें योग को फिटनेस का अभिन्न हिस्सा बनाया गया।
2. Yoga at Home, Yoga with Family (2020): महामारी के दौरान घरों में योग साधना को लोकप्रिय किया गया।
3. My Life My Yoga प्रतियोगिता: डिजिटल प्लेटफार्म पर आयोजित यह अभियान करोड़ों युवाओं को योग से जोड़ा।
उनकी दृष्टि में योग “एक ऐसा माध्यम है जो व्यक्ति से लेकर समाज, और समाज से लेकर विश्व को एकता के सूत्र में बाँधता है।”
योग के माध्यम से वैश्विक कूटनीति (Yoga Diplomacy)
मोदी ने योग को भारतीय विदेश नीति का सांस्कृतिक राजदूत बना दिया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र, यूनेस्को, WHO और G20 जैसे मंचों पर योग को वैश्विक स्वास्थ्य नीति का हिस्सा बनाने की अपील की। अमेरिका, फ्रांस, जापान, UAE और ऑस्ट्रेलिया में आयोजित योग कार्यक्रमों में स्वयं भाग लिया। 2015 में दिल्ली के राजपथ पर 35,000 लोगों के साथ योगाभ्यास का विश्व रिकॉर्ड बना। इसने योग को केवल भारतीय नहीं, बल्कि वैश्विक मानवता का प्रतीक बना दिया।
योग को जीवनशैली और आत्मिक साधना के रूप में अपनाना – प्रधानमंत्री मोदी स्वयं एक योग साधक हैं। वे अपने व्यक्तिगत अनुशासन में रोज योग, प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास करते हैं। उनके साक्षात्कारों में कई बार यह झलकता है कि योग ने उन्हें मानसिक स्पष्टता, शांति और निर्णय क्षमता दी है। वे कहते हैं “योग ने मुझे कठिन परिस्थितियों में भी स्थिर और संतुलित बने रहने की शक्ति दी है।”
RSS के स्वयंसेवक के रूप में मोदी की योग दृष्टि-
प्रधानमंत्री मोदी RSS के स्वयंसेवक है उनका व्यक्तित्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कारों में ढला हुआ है। वे बचपन से संघ की शाखा में जाते रहे और एक कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने कई वर्षों तक कार्य किया है। संघ के अनुशासन, सेवा, राष्ट्रभक्ति और आत्मसंयम का जो संस्कार उन्हें मिला वह उनके योग दृष्टिकोण में गहराई से झलकता है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस दर्शन को व्यवहारिक राजनीति में उतारा जहाँ वे शासन को केवल प्रशासन नहीं, बल्कि “सेवा साधना” मानते हैं।
मोदी का व्यक्तित्व योगी की आत्मिक शांति और कर्मयोगी की सक्रियता का अद्भुत संगम है। संघ के संस्कारों ने उनमें यह संतुलन पैदा किया, वे दिनभर के व्यस्त कार्यक्रमों के बाद भी आत्मिक रूप से स्थिर रहते हैं। उनका जीवन योगसूत्र के इस श्लोक को साकार करता है “योगः कर्मसु कौशलम्” अर्थात कर्म की कुशलता ही योग है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का योग के क्षेत्र में योगदान –
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि संघ की आत्मा और अनुशासन की साधना का अंग और चरित्र निर्माण की साधना है। संघ मानता है कि शरीर, मन और समाज तीनों का संतुलन ही राष्ट्रनिर्माण का आधार है और यह योग के बिना संभव नहीं। संघ के अनुसार “स्वस्थ स्वयंसेवक ही स्वस्थ राष्ट्र का निर्माता होता है।” योग के माध्यम से शरीर, मन और आत्मा को अनुशासित कर राष्ट्रसेवा के लिए तत्परता विकसित होती है।
संघ शाखा में योग को व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण के मार्ग का एक मुख्य घटक मानता है। उसके अनुसार योग अनुशासन, समर्पण और एकाग्रता सिखाता है, यही गुण संघ स्वयंसेवक में अपेक्षित हैं। संघ के “एकात्म मानव दर्शन” का मूल भी यही है “मनुष्य शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का समग्र अस्तित्व है।”
शाखाओं में योग का नियमित अभ्यास:
हर शाखा में प्रतिदिन सूर्यनमस्कार, ध्यान, और प्राणायाम के अभ्यास कराए जाते हैं। स्वयंसेवक शारीरिक और मानसिक संतुलन के लिए योग को जीवनशैली का हिस्सा बनाते हैं।
संघ शिक्षा वर्गों में योग:
संघ के वार्षिक प्रशिक्षण वर्गों में योग को दैनिक अनुशासन का हिस्सा बनाया गया है। इससे हजारों स्वयंसेवक मानसिक स्थिरता और शारीरिक दक्षता प्राप्त करते हैं।
योग के सामाजिक और राष्ट्रधर्म से जुड़ाव:
संघ योग को केवल शरीर निर्माण नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण और राष्ट्र निर्माण का साधन मानता है। “एकात्म मानव दर्शन” (पंडित दीनदयाल उपाध्याय का सिद्धांत) योग दर्शन की आत्मा से जुड़ा है, क्योंकि यह भी मनुष्य और समाज के समग्र विकास की बात करता है। शाखा के माध्यम से संघ ने लाखों युवाओं में आत्मविश्वास, अनुशासन और सकारात्मक सोच का संस्कार भरा जो योग का वास्तविक लक्ष्य है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दोनों ने मिलकर योग को भारतीय संस्कृति की आत्मा से विश्व मानवता के जीवन तक पहुँचाया है। संघ ने योग को चरित्र निर्माण और राष्ट्र निर्माण का साधन बनाया, और मोदी ने इसे विश्व शांति और मानवता के कल्याण का संदेश बना दिया।
प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दोनों के लिए योग केवल स्वास्थ्य साधन नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा को पुनः जागृत करने का माध्यम है। दोनों यह मानते हैं कि “योग व्यक्ति से समाज तक, और समाज से विश्व तक शांति, सहयोग और संतुलन का संदेश देता है।”
साझा उपलब्धियाँ:
1. योग को भारतीय संस्कृति की वैश्विक पहचान बनाना।
2. योग को राष्ट्रनिर्माण और जनस्वास्थ्य से जोड़ना।
3. योग के माध्यम से संस्कृति, अनुशासन और अध्यात्म का पुनर्जागरण।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विक नीति और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जमीनी कार्यप्रणाली ने मिलकर योग को “भारत की संस्कृति से विश्व मानवता की सभ्यता तक” पहुँचाया है। आज योग केवल भारत का नहीं, बल्कि मानवता का साझा धर्म बन चुका है।
संघ के शाखाओं में इसका संस्कार है, और मोदी जी की नीति में उसका प्रसार यही वह समन्वय है जिसने योग को 21वीं सदी की सबसे प्रभावशाली वैश्विक जीवनशैली बना दिया है।
आज योग केवल एक व्यायाम नहीं, बल्कि “भारत की आत्मा की वैश्विक अभिव्यक्ति” बन चुका है जिसका नेतृत्व एक ऐसे व्यक्ति ने किया जो स्वयं “संघ का स्वयंसेवक भी है, और विश्व मंच पर भारत का योगदूत भी।”





