कांपिल्य नगरी: जहाँ महाभारत की कथाएँ आज भी सांस लेती हैं।
Share your love

संवाद 24 (संजीव सोमवंशी)। उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में स्थित कांपिल्य (आधुनिक नाम कम्पिल) अपने आप में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और समृद्ध ऐतिहासिक नगरी है, जिसे पौराणिक-ऐतिहासिक दृष्टि से “इतिहास में जीवित” कहा जा सकता है। आज ये नगरी फर्रुखाबाद जनपद की कायमगंज तहसील में स्थित है, इसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण में राजा ब्रह्मदत्त की राजधानी के रूप में और महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत के आदि पर्व में राजा द्रुपद की राजधानी के रूप में मिलता है। यह द्रोपदी एवं धृष्टद्युम्न का प्राकट्य स्थल है। यहीं पर द्रोपदी का स्वयंवर स्थल है, जहाँ अर्जुन द्वारा मीन की आंख का भेदन किया गया था। जो आज उत्तर प्रदेश सरकार का राज्य चिह्न भी है।
यह जैन आस्था का एक प्रमुख केंद्र है, क्योंकि कहा जाता है कि जैन तीर्थंकर ऋषभदेव ने यहीं पर अपना प्रथम उपदेश दिया था, और यह तेरहवें तीर्थंकर विमलनाथ जी की जन्म स्थली भी है। यहाँ वर्ष भर श्वेतांबर एवं दिगंबर जैन मंदिरों के दर्शन हेतु श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों का आगमन होता है।
इसे पर्यटन की दृष्टि से देखने पर न केवल इसके धार्मिक और पुरातात्विक महत्व का आभास होता है बल्कि यहाँ की सांस्कृतिक विरासत, प्राकृतिक परिवेश और स्थानीय जीवन-शैली भी सभी को अपनी ओर आकर्षित करती है।
नगर की विशेषताएँ
कांपिल्य नगरी विविधतापूर्ण विशेषताएँ से युक्त है, यहां का धार्मिक, पुरातात्विक, पौराणिक एवं प्राकृतिक वातावरण आपको हजारों वर्ष पूर्व का अनुभव कराता है। यह नगरी गंगा के तट के समीप स्थित है और पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
यहाँ प्रमुख धार्मिक स्थल मौजूद हैं जैसे कि रामेश्वर नाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग का विशेष स्थान है। एक जनश्रुति के अनुसार माता सीता द्वारा संरक्षित प्राचीन शिवलिंग की स्थापना शत्रुघ्न जी द्वारा काम्पिल में की गई थी, जिसका मुख्य मंदिर रामेश्वर नाथ धाम से प्रसिद्ध है। श्रावण मास, महाशिवरात्रि एवं पूर्णिमा पर यहाँ महामेले का आयोजन होता है।
जैन धर्म के दृष्टिकोण से भी यह एक पवित्र तीर्थस्थान है: तेरहवें तीर्थंकर विमलनाथ का जन्मस्थान तथा वहाँ जैन मंदिर मौजूद हैं।नगर का प्राचीन नाम “काम्पिल्य” (Kampilya) रहा है, जो साहित्य, पुराण एवं महाकाव्यों में उल्लिखित है। स्थानिक-संस्कृति, तीर्थयात्री-वातावरण और ग्रामीण-परिवेश का मेल यहाँ पर्यटन के लिए अनुकूल माहौल बनाता है। इन विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए, कांपिल्य यात्रियों के लिए एक समृद्ध अनुभव प्रस्तुत करती है, जहाँ आप पुरातन युग का अनुभव कर सकते हैं, साथ ही शांतिपूर्ण धार्मिक-पर्यटन भी कर सकते हैं।
प्राचीनता एवं इतिहास
कांपिल्य की प्राचीनता और इतिहास विषयक जानकारी विशेष रूप से रोचक है। इसे समझने के लिए इसे विभिन्न काल विभाजनों में देख सकते हैं।
1. पौराणिक एवं महाकाव्यकाल
वाल्मीकि रामायण में राजा ब्रह्मदत्त की राजधानी के रूप में इसका वर्णन मिलता है। मान्यता है कि जिस शिवलिंग की पूजा माता सीता करती थीं वह उन्होंने शत्रुघ्न जी को दिया और कहा कि इसे किसी पवित्र स्थान पर स्थापित करना। भगवान श्री राम ने जब च्यवन ऋषि के कहने पर लवणासुर को मारने का जिम्मा अपने छोटे भाई शत्रुघ्न को सौंपा, क्योंकि वह चाहते थे कि यह कार्य शत्रुघ्न पूरा करें। इसी समय माता सीता द्वारा दिये शिवलिंग को कपिल मुनि की तपोभूमि काम्पिल्य में स्थापित कर शत्रुघ्नजी मधुपुर पहुँचे और लवणासुर को युद्ध में पराजित कर उसका वध किया।

महाभारत काल में यहां राजा द्रुपद का शासन था, यह नगर उनका राजधानी एवं पञ्चाल राज्य का केंद्र माना जाता है। महाभारत के अनुसार, जब पञ्चाल राज्य का विभाजन हुआ तब उत्तर पञ्चाल की राजधानी अहिच्छत्रा तथा दक्षिण पञ्चाल की राजधानी काम्पिल्य बनी। महाभारत के आदि पर्व में वर्णन मिलता है: “तथापि दक्षिणपञ्चाले काम्पिल्यायां…” जैसे वाक्यांश। महाभारत के अनुसार, यही स्थान है जहाँ द्रौपदी का स्वयंवर हुआ और उनका जन्म हुआ माना जाता है। यजुर्वेद की तैत्तरीय संहिता में ‘कंपिला’ नाम का उल्लेख मिलता है, जो इस स्थलीय नाम-उत्पत्ति की पुष्टि करता है। स्थानीय मान्यताओं में कहा जाता है कि त्रेता-युग में कपिल मुनि का आश्रम यहाँ था, जिसका नामकरण बाद में इस नगरी का नाम रहा।
2. मध्यकाल एवं ऐतिहासिक रिकॉर्ड
मध्यकालीन समय में भी यह स्थान उल्लेखित रहा था; उदाहरण के लिए, मुग़ल काल के रिकॉर्ड में इस स्थानीयता का उल्लेख ‘परगना’ के रूप में मिलता है। पुरातात्विक खुदाई एवं स्थानीय श्रुति-कथाओं से इस जगह पर वहाँ के मंदिरों, कुंडों तथा प्राचीन ईंट-ढाँचे मिले हैं।
3. आधुनिक समय में स्थिति
आज यह नगरी हिन्दू-जैन सांस्कृतिक मिलन-स्थान बनी हुई है। जैन मंदिरों का अस्तित्व इसके धार्मिक बहुविधि महत्व को दर्शाता है। पर्यटन एवं धार्मिक दृष्टि से क्षेत्र में कुछ विकास की दिशा में पहल हो रही है।
इस प्रकार, कांपिल्य न केवल पौराणिक काल से जुड़ी नगरी है, बल्कि समय-समय पर विभिन्न सामाजिक-धार्मिक रूपों से सम्पन्न रही है। यह इतिहास का जीवित प्रतिक रूप लेती है।
प्रमुख लोग एवं पौराणिक पात्र
कांपिल्य से जुड़े कुछ प्रमुख व्यक्तित्व और पौराणिक पात्र नीचे दिए गए हैं-
1. राजा ब्रह्मदत्त: बाल्मीकि रामायण में कांपिल्य को इनकी राजधानी के रूप में दर्शाया गया है।
2. राजा द्रुपद: पंचाल देश में राजा थे और द्रौपदी के पिता। उनकी राजधानी कांपिल्य मानी जाती है।
3. द्रौपदी: महाभारत की प्रमुख नायिका, जिनका जन्म-स्वयंवर कांपिल्य में हुआ माना जाता है।
4. कपिल मुनि: आध्यात्मिक गुरु जिनके नाम पर इस स्थान का नामकरण हुआ, तथा जिनका आश्रम यहाँ माना जाता है।
5. विमलनाथ जी: जैन धर्म के 13 वें तीर्थंकर, जिन्हें इस स्थान से सम्बंधित जन्मस्थल माना जाता है।
6. वाराहमिहिर: प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य जिनके जन्मस्थान की एक मान्यता इस स्थान से जुड़ी हुई है।
इन प्रमुख व्यक्तियों‐पात्रों के कारण कांपिल्य का न सिर्फ धार्मिक बल्कि पौराणिक एवं सांस्कृतिक महत्व भी विशेष हो जाता है। पंडवों-पंचालों की कथा-भूमि के रूप में यह जगह यात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनती है।
वर्तमान स्थिति एवं पर्यटन-दृष्टि
आज कांपिल्य की वर्तमान स्थिति में जहाँ कुछ चुनौतियाँ हैं, वहीं पर्याप्त अवसर भी मौजूद हैं, विशेष रूप से पर्यटन के दृष्टिकोण से।
1. वर्तमान सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य
स्थानीय रूप से यह एक छोटा-सा नगर है, जिसमें पर्यटन-विकास अभी प्रारंभिक अवस्था में है। धार्मिक-यात्रा हेतु आने वाले लोग स्थानीय मंदिरों, कुंडों एवं तीर्थों का लाभ उठा सकते हैं। लेकिन आवास, परिवहन और सूचना-सुविधाओं को बेहतर करने की आवश्यकता है, ताकि यह स्थान एक समृद्ध पर्यटन स्थल बन सके। स्थानीय-सरकारी पहलें भी चल रही हैं, जैसे कि इस प्रकार के स्थल को पर्यटन मानचित्र पर लाने हेतु ब्लू-प्रिंट तैयार किए गए हैं।
2. पर्यटन-दृष्टि से सुझाव एवं आकर्षण बिंदु
अगर आप इतिहास-प्रेमी हैं या धार्मिक-यात्रा करना चाहते हैं, तो कांपिल्य आपके लिए उपयुक्त स्थान है यहाँ पौराणिक कथाएँ जीवंत हैं। यहाँ का द्रौपदी कुंड, रामेश्वरनाथ मंदिर, जैन मंदिर व तीर्थक्षेत्र आदि स्थल प्रमुख हैं जिनका भ्रमण किया जा सकता है।
पड़ोसी प्राकृतिक वातावरण, गंगा-तट, ग्रामीण-परिसर आदि भी यात्रा को सुखद बनाते हैं। यदि समय-अनुसार जाएँ जैसे सावन के महीने में शिव-पूजा या जैन पर्वों के अवसर पर तो स्थानीय उत्सव-माहौल देखें। स्थानीय भोजन, हस्तशिल्प व संस्कृति का अनुभव करना न भूलें, छोटा-हस्त-उद्योग, लोक-कला-संस्कृति देखने योग्य हैं। स्थलीय जानकारी, गाइड-सेवा की कमी हो सकती है, इसलिए अग्रिम योजना बनाकर जाना बेहतर रहेगा।
3. चुनौतियाँ एवं विकास की दिशा
आवागमन के साधनों की स्थिति अभी पूरी तरह सहज नहीं बेहतर सड़क-मार्ग, सूचना-संकेत और पर्यटक-उपकरणों की आवश्यकता है। आवास-विकल्प सीमित हो सकते हैं अच्छे होटल या धर्मशालाओं की संख्या कम हो सकती है। पुरातात्विक संरक्षण एवं दृश्याभिज्ञान को उन्नत करना आवश्यक है ताकि स्थल-प्रस्तुति बेहतर हो सके। यदि स्थानीय प्रशासन एवं पर्यटन-विभाग इस स्थान को सक्रिय रूप से विकसित करें, तो यह स्थल राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय पर्यटन में अपनी जगह बना सकता है।
आवागमन के साधन
किसी पर्यटन स्थल की सफलता में वहाँ तक पहुँचने की सुगमता बहुत महत्वपूर्ण होती है। कांपिल्य को पहुँचने के लिए निम्नलिखित विकल्प उपलब्ध हैं:
रेल द्वारा: सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन कायमगंज रेलवे स्टेशन बताया गया है।
सड़क द्वारा: फर्रुखाबाद मुख्यालय से लगभग ४५ किलोमीटर की दूरी पर यह स्थान स्थित है। स्थानीय मार्गों से टैक्सी, ई-रिक्शा आदि उपलब्ध हो सकते हैं।
हवाई मार्ग: निकटतम प्रमुख हवाई अड्डा लखनऊ या कानपुर हो सकते हैं; वहाँ से सड़क द्वारा आगे का सफर करना होगा।
स्थानीय परिवहन: गांव-कस्बों से स्थानीय बसें, ऑटो-रिक्शा या निजी टैक्सी सुविधा मिल सकती है।
सुझाव: यात्रा से पहले मौसम, मार्ग-स्थिति एवं स्थानीय दिशा निर्देशों की जानकारी कर लें, ताकि यात्रा सहज हो सके।
कांपिल्य एक ऐसा स्थान है जहाँ पौराणिक-महाकाव्यकाल की कथाएँ, धर्म-परंपराएँ और आज का गाँव-जीवन मिलते हैं। यदि आप उत्तर प्रदेश में इतिहास-यात्रा करना चाहते हैं, तो यह नगरी एक उत्कृष्ट विकल्प प्रस्तुत करती है। यहाँ का प्रकाशित इतिहास, धार्मिक-स्थान, पुरातात्विक अवशेष एवं प्राकृतिक परिवेश मिलकर एक समृद्ध पर्यटन अनुभव बनाते हैं।
हालाँकि विकास की चुनौतियाँ भी हैं, लेकिन यदि आपने रोड-ट्रिप, धार्मिक-विरासत यात्रा या शांतिपूर्ण एक-दो दिन की टूर योजना बनाई है, तो कांपिल्य आपके लिए एक यादगार पड़ाव बन सकती है।
आपकी सुविधा के लिए कुछ पर्यटन से संबंधित तथ्य निम्नलिखित हैं –
1. टूरिस्ट-रूट
कांपिल्य में घूमने योग्य प्रमुख स्थल और एक प्रस्तावित सुझाव यात्रा-दिशा निम्न है:
प्रमुख स्थल
1.1. द्रौपदी कुंड (Draupadi Kund) – पौराणिक कथाओं में इस कुंड का विशेष महत्व है।
1.2. रामेश्वर नाथ मंदिर (Rameshwar Nath Temple) – धार्मिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से देखा जाना योग्य स्थल।
1.3. विमलनाथ जैन तीर्थ (Vimalnath Jain Tirth) – जैन धर्मावलम्बियों के लिए पवित्र स्थल, साथ ही अन्य पर्यटकों के लिए शांतिपूर्ण अनुभव।
1.4. कांपिल्य वासिनि देवी मंदिर – कांपिल्य में एक कांपिल्य वासिनि देवी मंदिर है, जहाँ देवी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि यहाँ पूजा-अर्चना करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है और माँ अपने भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। माँ कांपिल्य वासिनी (कोटवाली देवी) को नगर की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। नवरात्र और विशेष पर्वों पर यहाँ विशाल कार्यक्रम आयोजित होते हैं, जहाँ दूर-दूर से भक्त दर्शन के लिए पहुँचते हैं।

2. प्रस्तावित यात्रा-दिशा (1-2 दिन)
पहला दिन: सुबह पहुँचते ही द्रौपदी कुंड और रामेश्वर नाथ मंदिर का दर्शन करें। दोपहर को स्थानीय भोजन करें। शाम को गंगा-तट या मुगल घाट पर शांत समय बिताएं।
दूसरा दिन: सुबह जैन तीर्थ-क्षेत्र की यात्रा करें। उसके बाद स्थानीय गाँवों-मार्गों का आनंद लें, हाथ-कला-दुकानों में घूमें। यदि समय हो तो आसपास के छोटे मंदिर-गाँव देखें।
3. धर्मशालाएँ / होटल विकल्प
कांपिल्य एवं आसपास क्षेत्र में आवास विकल्प सीमित हैं इसलिए अग्रिम योजना करना बेहतर रहेगा।
कुछ विकल्प
– कांपिल्य-के पास कायमगंज में धर्मशाला सूचीबद्ध है।
– फर्रुखाबाद-के क्षेत्र में बजट-विकल्प।
यदि कांपिल्य में उपयुक्त होटल न मिले तो नज़दीकी फर्रुखाबाद शहर में होटल-ब्रुकिंग करें।
4. सुझाव
सुबह जल्दी निकलें ताकि दिन में गर्मी और भीड़ से बचा जा सके।
Comfortable footwear (आरामदायक जूते) पहनें क्योंकि ढलान व पैदल-मार्ग हो सकते हैं। स्थानीय निर्देश/दिशा-संकेत पर ध्यान दें, क्योंकि सभी स्थलों पर ‘टूरिस्ट इंफोर्मेशन’ बहुत व्यवस्थित नहीं हो सकती।
होटल में समय पर चेक-इन कर लें क्योंकि अच्छी सुविधा वाले कमरे जल्दी भर सकते हैं। यदि बजट कम हो-तो धर्मशाला/गेस्टहाउस विकल्प देखें। पानी, शौचालय, पार्किंग जैसी मूलभूत सुविधाएँ पहले से पता कर लें। छुट्टियों या त्योहारों के समय ज़्यादा भीड़ हो सकती है, उस हिसाब से योजना बनाएं।
5. स्थानीय हस्तशिल्प व संस्कृति
कांपिल्य जैसे प्राचीन-नगरी में सिर्फ मंदिर-घूमना ही नहीं, बल्कि वहाँ की स्थानीय संस्कृति, हस्तशिल्प और जीवनशैली का अनुभव भी महत्वपूर्ण है।
स्थानीय बाजारों में जाएँ जहाँ आप छोटे-हस्तशिल्प सामान, लोक-कला, धार्मिक आइटम आदि देख सकते हैं। गाँव-मार्ग पर चलते हुए स्थानीय निवासियों से बात करें, उनके जीवन-शैली, परंपराएँ जानें।
यदि संभव हो-तो स्थानीय भोजन-व्यंजन चखें, जो पूरे पर्यटन अनुभव को समृद्ध बनाएगा। याद रखें: इस तरह की यात्रा से आप सिर्फ “स्थल देखने” नहीं बल्कि “स्थल अनुभव” कर सकते हैं।
