भारतीय वास्तु शास्त्र के रहस्य: आपका घर और कार्यस्थल कैसे बदल सकते हैं आपकी जिंदगी! 

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संवाद 24 (संजीव सोमवंशी)। भारतीय वास्तु शास्त्र प्राचीन भारतीय विज्ञान की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जो भवन निर्माण, स्थापत्य कला और पर्यावरणीय सामंजस्य पर आधारित है। यह शास्त्र हजारों वर्ष पुराना है और वेदों, पुराणों तथा अन्य ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। वास्तु शास्त्र का मूल उद्देश्य मानव जीवन को प्रकृति के पांच तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के साथ संतुलित करना है। यह न केवल भवनों के डिजाइन को प्रभावित करता है, बल्कि निवासियों के स्वास्थ्य, समृद्धि, मानसिक शांति और समग्र कल्याण को भी सुनिश्चित करता है। आधुनिक युग में, जहां तनावपूर्ण जीवनशैली और पर्यावरणीय असंतुलन बढ़ रहा है, वास्तु शास्त्र की प्रासंगिकता और भी अधिक हो गई है। 

वास्तु शास्त्र की जड़ें वैदिक काल में मिलती हैं। ऋग्वेद, अथर्ववेद और अन्य वेदों में भवन निर्माण के नियमों का वर्णन है। प्रमुख ग्रंथ जैसे विश्वकर्मा प्रकाश, मयमत, मानसार और बृहत्संहिता में वास्तु के सिद्धांत विस्तार से वर्णित हैं। विश्वकर्मा को वास्तु का देवता माना जाता है, जो ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं। प्राचीन काल में मंदिरों, महलों और शहरों के निर्माण में वास्तु का पालन अनिवार्य था, जैसे अजंता-एलोरा की गुफाएं, खजुराहो के मंदिर और फतेहपुर सीकरी। मध्यकाल में मुगल और राजपूत वास्तुकला में भी इसका प्रभाव दिखता है। आधुनिक समय में, ले कोर्बुजियर जैसे स्थापतियों ने भारतीय वास्तु से प्रेरणा ली है। वास्तु शास्त्र समय के साथ विकसित हुआ है और आज वैज्ञानिक अनुसंधान से भी जुड़ रहा है।

वास्तु शास्त्र की उपयोगिता बहुआयामी है। सबसे पहले, यह सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह सुनिश्चित करता है। वैज्ञानिक दृष्टि से, यह भवनों में प्रकाश, वायु संचार और चुंबकीय क्षेत्र को संतुलित करता है, जो स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। उदाहरणस्वरूप, उत्तर-पूर्व दिशा में जल स्रोत रखने से मस्तिष्क की शांति बढ़ती है, क्योंकि यह दिशा सूर्योदय की किरणों से जुड़ी है। दूसरा, यह आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देता है। दक्षिण-पश्चिम दिशा में भारी सामान रखने से स्थिरता आती है, जो व्यवसायिक सफलता से जुड़ी है। तीसरा, मानसिक स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है; गलत वास्तु से तनाव, अनिद्रा और पारिवारिक कलह बढ़ सकती है। अध्ययनों से पता चलता है कि वास्तु-अनुकूल घरों में निवासी अधिक उत्पादक होते हैं। चौथा, पर्यावरण संरक्षण में योगदान देता है, जैसे दिशाओं के अनुसार पेड़ लगाना। पांचवां, वाणिज्यिक उपयोग में; होटल, अस्पताल और कार्यालयों में वास्तु से ग्राहक आकर्षण और कर्मचारी संतुष्टि बढ़ती है। कुल मिलाकर, यह जीवन की गुणवत्ता सुधारता है।

वास्तु शास्त्र का आधार पंच महाभूत हैं। पृथ्वी तत्व दक्षिण-पश्चिम दिशा से जुड़ा है, जो स्थिरता प्रदान करता है। जल तत्व उत्तर-पूर्व में, जो शुद्धता और प्रवाह का प्रतीक है। अग्नि तत्व दक्षिण-पूर्व में, जो ऊर्जा और प्रकाश देता है। वायु तत्व उत्तर-पश्चिम में, जो गति और संचार को नियंत्रित करता है। आकाश तत्व केंद्र में, जो खुलापन और आध्यात्मिकता लाता है। इन तत्वों का असंतुलन रोग, हानि या अशांति पैदा करता है। उदाहरण के लिए, यदि अग्नि तत्व कमजोर हो तो पाचन समस्या हो सकती है। वास्तु में इनका संतुलन भवन के आकार, रंग और सामग्री से किया जाता है।

वास्तु पुरुष मंडल एक प्रमुख सिद्धांत है, जिसमें भूखंड को 81 भागों में विभाजित किया जाता है। वास्तु पुरुष को सिर उत्तर-पूर्व, पैर दक्षिण-पश्चिम और हृदय केंद्र में माना जाता है। उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) को सबसे पवित्र माना जाता है; यहां पूजा कक्ष या जल स्रोत रखें। दक्षिण-पूर्व (आग्नेय कोण) रसोई के लिए उपयुक्त। दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण) मालिक का कमरा। उत्तर-पश्चिम (वायव्य कोण) अतिथि कक्ष। केंद्र (ब्रह्मस्थान) खुला रखें। दिशाओं का उल्लंघन नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है। चुंबकीय क्षेत्र के अनुसार, उत्तर दिशा सकारात्मक ध्रुव से जुड़ी है, जो मस्तिष्क को शांत रखती है।

भवन का आकार आयताकार या वर्गाकार होना चाहिए, अनियमित आकार ऊर्जा असंतुलन पैदा करते हैं। दरवाजे और खिड़कियां सम संख्या में हों। मुख्य द्वार उत्तर या पूर्व में हो तो शुभ। छत समतल या ढलान वाली हो, लेकिन टूटे-फूटे न हों। रंगों का चयन दिशानुसार करना होता है। ये सिद्धांत सौंदर्य और कार्यक्षमता दोनों बढ़ाते हैं।

आवासीय भवनों में वास्तु का पालन परिवार की सुख-समृद्धि सुनिश्चित करता है। प्लॉट चयन में दक्षिण-पश्चिम ऊंचा हो। रसोई दक्षिण-पूर्व में, जहां अग्नि तत्व प्रबल है। शयनकक्ष दक्षिण-पश्चिम में, सिर दक्षिण की ओर। पूजा कक्ष उत्तर-पूर्व में। बच्चों का कमरा पूर्व या उत्तर में। सीढ़ियां दक्षिण या पश्चिम में, घड़ी की दिशा में चढ़ें। बाथरूम दक्षिण-पश्चिम या उत्तर-पश्चिम में। ये नियम नींद, स्वास्थ्य और संबंधों को मजबूत बनाते हैं। आधुनिक अपार्टमेंट में भी सुधार संभव हैं, जैसे मिरर या पिरामिड से।

वाणिज्यिक भवनों में वास्तु लाभप्रद है। कार्यालय में मालिक का कक्ष दक्षिण-पश्चिम, कर्मचारी उत्तर या पूर्व में। प्रवेश द्वार उत्तर या पूर्व। कैश काउंटर दक्षिण-पश्चिम। अस्पतालों में ऑपरेशन थिएटर दक्षिण-पूर्व, रोगी कक्ष उत्तर। होटलों में रिसेप्शन उत्तर-पूर्व। फैक्टरियों में मशीनरी दक्षिण-पूर्व। ये व्यवस्था उत्पादकता और सुरक्षा बढ़ाती है। कई बड़ी कंपनियां वास्तु सलाह लेती हैं।

इस संदर्भ में एक पद्धति फेंग शुई भी प्रचलित है। वास्तु भारतीय है, जबकि फेंग शुई चीनी। दोनों ऊर्जा प्रवाह पर आधारित हैं, लेकिन वास्तु दिशाओं और तत्वों पर अधिक जोर देता है। फेंग शुई में बैगुआ चार्ट, वास्तु में मंडल। दोनों पूरक हो सकते हैं।

आधुनिक विज्ञान वास्तु को मान्यता दे रहा है। जियोपैथिक स्ट्रेस अध्ययन दिखाते हैं कि भूमिगत जल धाराएं स्वास्थ्य प्रभावित करती हैं, जो वास्तु में वर्जित हैं। सौर ऊर्जा और वेंटिलेशन वास्तु दिशाओं से मेल खाते हैं। न्यूरोसाइंस में उत्तर दिशा नींद सुधारती है। हालांकि, अंधविश्वास से बचें, वास्तु विज्ञान और आस्था का मिश्रण है।

भारतीय वास्तु शास्त्र एक समग्र विज्ञान है, जो जीवन को संतुलित बनाता है। इसकी उपयोगिता स्वास्थ्य, समृद्धि और शांति में है। प्रमुख सिद्धांत पंच महाभूत, दिशाएं और मंडल पर आधारित हैं। आधुनिक जीवन में अपनाकर हम प्राचीन ज्ञान का लाभ उठा सकते हैं। पेशेवर सलाह से लागू करें, ताकि सकारात्मक परिणाम मिलें। वास्तु न केवल भवन बनाता है, बल्कि जीवन को समृद्ध करता है।

Samvad 24 Office
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